वर्ष 2024 में चने के आयात में जबरदस्त उछाल देखा गया है। जनवरी से नवंबर के बीच चने का आयात 2023 की समान अवधि के 1 लाख 19 हजार 804 टन के मुकाबले 93% बढ़कर 2 लाख 31 हजार 650 टन हो गया। ऑस्ट्रेलिया और तंजानिया से बढ़ते आयात ने इस वृद्धि में अहम भूमिका निभाई है।
तेजी पर लगाम लगाने वाले कारक:
मटर और मसूर जैसे अन्य दलहनों का आयात।
घरेलू उत्पादन में सुधार।
हरी सब्जियों का बढ़ता उत्पादन।
ये सभी कारक चने की कीमतों पर दबाव डाल सकते हैं और संभावित तेजी को रोक सकते हैं।
सरकारी नीतियों से खाद्य तेलों और तिलहनों पर नियंत्रण
भारत सरकार ने तिलहनों के उत्पादन को बढ़ावा देने और खाद्य तेलों के आयात शुल्क में वृद्धि करने के प्रयास किए हैं। इसके परिणामस्वरूप:
सोया, मूंगफली, तिल, और खोपरा के मूल्यों में कमी आई है।
पाम तेल के आयात पर भी नियंत्रण पाया गया है।
42% तुवर आयात वृद्धि: 2024 में क्या बदलेगा?
जानकार सूत्रों के अनुसार, भारत में तुवर का आयात भी तेजी से बढ़ रहा है। जनवरी से नवंबर 2024 के दौरान तुवर का आयात 2023 के 8 लाख 5 हजार टन के मुकाबले 42% बढ़कर 11 लाख 43 हजार टन हो गया। इसके बावजूद, घरेलू तुवर की कीमत 12,500 रुपये प्रति क्विंटल को पार कर गई।
अन्य महत्वपूर्ण बिंदु:
विदेशों में तुवर उत्पादन बढ़ने की संभावना।
भारत सरकार द्वारा कर-मुक्त आयात की समय सीमा 31 मार्च 2026 तक बढ़ाई गई है।
बंपर उत्पादन का असर:
घरेलू बंपर उत्पादन के कारण नई फसल के मूल्यों में भारी गिरावट हो सकती है।
सरकार द्वारा समर्थन मूल्य पर खरीदी गई लगभग 9 लाख टन तुवर की भविष्य में बिक्री की संभावना है।
निष्कर्ष:
दलहनों और तिलहनों के बढ़ते आयात और घरेलू उत्पादन पर भारत सरकार की नीतियों का प्रभाव बाजार पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है। बढ़ती प्रतिस्पर्धा और नीतिगत फैसले बाजार की दिशा तय करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।