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सरसों में गिरावट का दौर जारी, विदेशी दबाव और सुस्त मांग ने बिगाड़ा संतुलन

बीते सप्ताह सरसों बाजार में दबाव का माहौल देखने को मिला। देशभर की मंडियों में सरसों की कीमतों में नरमी बनी रही, जिसके पीछे प्रमुख कारण विदेशी बाजारों में गिरावट, खल में आई कमजोरी और...........

Opinion 21 Apr
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बीते सप्ताह सरसों बाजार में दबाव का माहौल देखने को मिला। देशभर की मंडियों में सरसों की कीमतों में नरमी बनी रही, जिसके पीछे प्रमुख कारण विदेशी बाजारों में गिरावट, खल में आई कमजोरी और घरेलू स्तर पर मांग की कमी रही। जयपुर सरसों 6425 रुपये के रेजिस्टेंस को पार नहीं कर पाया और एक बार फिर नीचे की ओर फिसल गया। वहीं, कच्ची घानी सरसों तेल में भी 3 रुपये प्रति किलो की गिरावट दर्ज की गई और भाव 1300 के नीचे आ गए।

सरसों खल में तेजी थमी, मांग में गिरावट

मार्च माह में चीन और साउथ कोरिया की मजबूत मांग के चलते सरसों डीओसी (खल) के निर्यात में 37.73% की बढ़ोतरी देखी गई। चीन ने 36,703 टन और साउथ कोरिया ने 67,478 टन डीओसी का आयात किया। कनाडा पर ऊंचे टैरिफ के कारण चीन ने भारत से खरीदारी बढ़ाई। इसके अलावा यूरोप में रेपसीड माल की कमी के चलते अंतरराष्ट्रीय बाजार में डीओसी की कीमतें उछलीं और 2000 रुपये के स्तर से बढ़कर 2250-2300 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच गईं। हालांकि अब डिमांड कमजोर पड़ने से खल में 50-100 रुपये की करेक्शन की संभावना जताई जा रही है।

सरसों तेल भी दबाव में, लंबी अवधि के लिए खरीदारी का मौका

सोया और पाम तेल में कमजोरी का असर सरसों तेल पर भी साफ दिखा। जयपुर की कच्ची घानी सरसों तेल में 3 रुपये प्रति किलो की गिरावट आई और भाव 1300 रुपये के नीचे पहुंच गए। फिलहाल 1250 रुपये प्रति किलो इसका मजबूत सपोर्ट है। विशेषज्ञों के अनुसार, मौजूदा स्तरों से इसमें 3-4 रुपये की और गिरावट आ सकती है, जहां से लंबी अवधि के लिए खरीदारी करना लाभकारी रहेगा। अप्रैल-मई के दौरान बाजार में बड़ी तेजी की उम्मीद कम है, जबकि मई मध्य के बाद से फिर मजबूती आ सकती है।

सरसों खरीद और क्रशिंग पर असर

सरकारी खरीद हरियाणा को छोड़ अन्य राज्यों में सुस्त चल रही है। केवल हरियाणा में अब तक करीब 7 लाख टन की खरीद हो चुकी है। मंडियों में सरसों के भाव अभी भी एमएसपी से ऊपर चल रहे हैं, जिससे किसान सरकारी एजेंसियों के बजाय मंडियों में माल बेचने को प्राथमिकता दे रहे हैं। वहीं तेल और खल में उठाव नहीं होने से क्रशिंग मीलों को डिस्पैरिटी का सामना करना पड़ रहा है, जिससे क्रशिंग में सुस्ती आई है।

क्या है आगे की राह?

विशेषज्ञों का मानना है कि फिलहाल सरसों का फंडामेंटल कमजोर नहीं है, लेकिन वैश्विक बाजारों की नरमी और गर्मियों में घरेलू मांग की कमी के चलते 100-150 रुपये प्रति क्विंटल की और गिरावट संभव है। हालांकि दीर्घकालिक दृष्टिकोण अब भी सकारात्मक बना हुआ है और जून से बाजार में फिर से रिकवरी की उम्मीद की जा रही है।

निष्कर्ष:
सरसों बाजार में इस समय सतर्क रहने की आवश्यकता है। व्यापारियों को मौजूदा करेक्शन को खरीदारी के अवसर के रूप में देखना चाहिए और दीर्घकालीन रणनीति पर ध्यान देना चाहिए, क्योंकि मौलिक संकेत अब भी मजबूत बने हुए हैं।

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