देश में गेहूं की सरकारी खरीद अपने संशोधित लक्ष्य से अभी भी काफी पीछे चल रही है। 4 मई 2025 तक राष्ट्रीय स्तर पर कुल 273.60 लाख टन गेहूं की खरीद हुई है, जो कि पिछले साल की तुलना में 42.30 लाख टन अधिक जरूर है, लेकिन इस वर्ष के संशोधित लक्ष्य 332.70 लाख टन से अब भी 59.10 लाख टन कम है।
पंजाब-हरियाणा में घटती आवक, यूपी की रफ्तार बेहद धीमी
मुख्य गेहूं उत्पादक राज्यों में खरीद की स्थिति मिश्रित रही है। पंजाब, जहां 124 लाख टन का लक्ष्य रखा गया था, वहां अब तक 111.90 लाख टन की खरीद हो चुकी है, लेकिन अब मंडियों में आवक तेजी से घट रही है और 15 मई को खरीद बंद होनी है। हरियाणा में 75 लाख टन के लक्ष्य के मुकाबले 67.70 लाख टन की खरीद हुई है और वहां भी खरीद लगभग ठप होने की स्थिति में है। उत्तर प्रदेश में हालात और भी चिंताजनक हैं — 30 लाख टन के लक्ष्य के सामने अब तक सिर्फ 8.50 लाख टन की ही खरीद हो पाई है। राजस्थान भी 20 लाख टन के लक्ष्य में से 12.80 लाख टन तक ही पहुंच सका है। बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में सरकारी खरीद नगण्य रही है।
मध्य प्रदेश बना उज्ज्वल उदाहरण
वहीं, मध्य प्रदेश ने एक मिसाल पेश की है। राज्य का प्रारंभिक लक्ष्य 66 लाख टन था, जिसे बढ़ाकर 80 लाख टन कर दिया गया। अब तक यहां 72.70 लाख टन गेहूं की खरीद हो चुकी है और ऐसा अनुमान है कि राज्य अपने लक्ष्य को जल्द ही पूरा कर लेगा।
क्यों पिछड़ रही है सरकारी खरीद?
कई प्रमुख कारण इस गिरावट के पीछे हैं। पंजाब और हरियाणा में जल्द ही खरीद बंद होने वाली है, और मौजूदा समय में मंडियों में गेहूं की आवक पहले ही कम हो चुकी है। दूसरी तरफ, किसानों का रुझान प्राइवेट व्यापारियों की ओर बढ़ा है क्योंकि वे उन्हें सरकारी न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक दाम दे रहे हैं। उत्तर प्रदेश, बिहार और गुजरात जैसे राज्यों में किसानों को सरकारी एजेंसियों पर भरोसा नहीं है, जिसके कारण वे अपना उत्पाद निजी व्यापारियों को बेचना ज्यादा सुरक्षित समझते हैं।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर इस सीजन में कुल खरीद 300 लाख टन तक पहुंचती है, तो इसे संतोषजनक माना जा सकता है। हालांकि, मौजूदा हालात को देखते हुए यह लक्ष्य भी चुनौतीपूर्ण दिख रहा है।