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खरीफ 2025 के लिए गुणवत्ता युक्त बीजों की पर्याप्त उपलब्धता, बीज कारोबारियों व किसानों के लिए सुनहरा अवसर

केंद्र सरकार ने खरीफ 2025 सीजन के लिए देश में गुणवत्ता युक्त यानी प्रमाणित बीजों की भरपूर उपलब्धता की पुष्टि की है। सरकार के अनुसार, इस वर्ष कुल 171.47 लाख क्विंटल बीज उपलब्ध हैं, जबकि......

Agriculture 12 May
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केंद्र सरकार ने खरीफ 2025 सीजन के लिए देश में गुणवत्ता युक्त यानी प्रमाणित बीजों की भरपूर उपलब्धता की पुष्टि की है। सरकार के अनुसार, इस वर्ष कुल 171.47 लाख क्विंटल बीज उपलब्ध हैं, जबकि अनुमानित मांग 158.18 लाख क्विंटल है। यानी कुल 13.29 लाख क्विंटल बीज अधिशेष हैं, जिससे किसानों को समय पर बीज मिल सकेगा और उत्पादन लक्ष्य प्राप्त किया जा सकेगा। यह अधिशेष बीजों की उपलब्धता किसानों, बीज व्यापारियों, डीलरों और एग्री-इन्पुट कंपनियों के लिए बड़ा अवसर है, विशेष रूप से उन राज्यों में जहां बीजों की कमी दर्ज की गई है।

कुछ राज्यों जैसे जम्मू-कश्मीर, झारखंड, नागालैंड और सिक्किम को छोड़कर बाकी सभी राज्यों में प्रमाणित बीज उपलब्ध हैं। हालांकि कुछ खास फसलों जैसे कुल्थी, लिटिल मिलेट, राजमा, आलू और कुछ चारे की किस्मों के बीजों की मांग के मुकाबले आपूर्ति कम है। इसी तरह तेलहन फसलों में भी कुछ राज्यों में बीज की कमी देखी गई है – तमिलनाडु, कर्नाटक और छत्तीसगढ़ में मूंगफली के प्रमाणित बीज, जबकि तमिलनाडु में तिल और छत्तीसगढ़ व ओडिशा में नीगर के बीजों की कमी बताई गई है।

ICAR ने बताया कि पिछले 10 वर्षों में जारी की गई 2,900 में से 2,661 किस्में जलवायु सहिष्णु हैं, जो बाढ़ और गर्मी जैसी चरम परिस्थितियों में भी फसल सुरक्षा और उत्पादकता को सुनिश्चित करती हैं। यही कारण है कि हाल के वर्षों में, जब मौसम असामान्य रहा, तब भी भारत का खाद्यान्न उत्पादन बना रहा।

सरकार ने खरीफ 2025 के लिए कुल खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य 168.88 मिलियन टन तय किया है, जो पिछले वर्ष के 166.39 मिलियन टन से लगभग 1.5% अधिक है। इसमें प्रमुख फसल धान का लक्ष्य 120.75 मिलियन टन रखा गया है। इसके अलावा दालों का लक्ष्य 7.74 मिलियन टन, मक्का 26 मिलियन टन, पोषक अनाज 14.39 मिलियन टन और तिलहन का 28.37 मिलियन टन तय किया गया है।

इस सकारात्मक परिदृश्य में, बीज उत्पादक कंपनियां, एग्री-स्टार्टअप्स, डीलर नेटवर्क और किसान समूहों (FPOs) के लिए यह समय बीज आपूर्ति श्रृंखला को मजबूत करने, राज्यों के बीच बीजों का कुशल वितरण सुनिश्चित करने और जलवायु-सहिष्णु किस्मों के प्रचार के लिए बेहद अनुकूल है। यह न केवल कृषि उत्पादकता बढ़ाने में मदद करेगा बल्कि देश को आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में भी एक महत्वपूर्ण कदम है।

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