देश के दलहन बाजारों में इस समय काबुली चना, देसी चना और मोठ जैसे प्रमुख उत्पादों की चाल में धीरे-धीरे बदलाव देखने को मिल रहा है। जहां कुछ सप्ताह पहले तक इन फसलों में लगातार मंदी का माहौल था, अब बाजार स्थिरता की ओर बढ़ता दिखाई दे रहा है।
काबुली चने की नई फसल अब आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के कोल्ड स्टोरेज और वेयरहाउसों में पहुंच चुकी है। इससे पुराने स्टॉक में फंसे व्यापारी माल को कम भावों में निकालने लगे, जिससे बाजार में हल्की गिरावट आई। हालांकि, अब निचले स्तर पर ग्राहकी में सुधार देखा जा रहा है। वहीं, आंध्र और कर्नाटक से पड़ते माल महंगे होने से अन्य मंडियों में बिकवाली का दबाव कम हुआ है। वर्तमान में महाराष्ट्र का कच्चा माल ₹68/70 और कर्नाटक का ₹72/74 प्रति किलो के स्तर पर बिक रहा है, जो बताता है कि बाजार में घबराने की ज़रूरत नहीं है।
दूसरी ओर देसी चने में स्थिति अपेक्षाकृत मजबूत दिख रही है। इस बार देश में उत्पादन कम हुआ है—कारण रहा प्रति हेक्टेयर उपज में कमी और दाने का वजन घटना। सरकार द्वारा ऑस्ट्रेलिया से आयातित काले चने पर 10% कस्टम ड्यूटी लगाए जाने से विदेशी माल महंगा हो गया है, जो पहले देसी चने से सस्ता बिकता था। अब ऑस्ट्रेलियाई चना ₹5900 और राजस्थानी चना ₹5800 प्रति क्विंटल के स्तर पर आ गया है, जिससे देसी चने को समर्थन मिल रहा है। मिलों की खरीद बढ़ते ही यहां और तेजी संभव है।
मोठ की बात करें तो राजस्थान की लगभग सभी मंडियों में इसकी आवक घट चुकी है और अब केवल स्टॉक से बिक्री हो रही है। हालांकि इस बार उत्पादन अधिक था, लेकिन कमजोर भावों के चलते माल पहले ही ज्यादा बिक चुका है। अभी बाजार ₹5100-₹5150 प्रति क्विंटल पर स्थिर बना हुआ है और नई फसल आने में समय है, इसलिए यहां से और गिरावट की गुंजाइश बेहद कम है।
कुल मिलाकर देखा जाए तो दलहन बाजार में एक "करेक्टिव फेज़" से गुजरने के बाद अब स्थिरता की स्थिति बन रही है। जहां काबुली चने में नीचे भाव पर मांग का उभरना संकेत देता है कि मंदी थम रही है, वहीं देसी चना मजबूत बुनियाद के साथ खड़ा है। मोठ में उत्पादन अधिक होने के बावजूद अब नई गिरावट की संभावना नहीं बची है। ऐसे में आने वाले सप्ताहों में बाजार का रुख स्थिर से हल्की तेजी की ओर झुक सकता है।