देश की प्रमुख अनाज मंडियों में कारोबार सुस्त रहा, जहां गेहूं और मक्का दोनों की खरीद-बिक्री सीमित दायरे में रही। इस मंदी का मुख्य कारण सरकारी एजेंसियों की सक्रिय खरीद और मंडियों में घटती निजी मांग रही।
राजस्थान की मंडियों – जैसे कोटा, बूंदी और बारां – में गेहूं के भावों में कोई विशेष बदलाव नहीं देखा गया। वहीं, मध्य प्रदेश के इंदौर और भोपाल में थोड़ी तेजी दर्ज की गई, लेकिन खरीदार सीमित मात्रा में सक्रिय रहे। किसानों का रुझान सरकारी खरीद की ओर अधिक रहा, जिससे खुले बाजार में आवक और सौदों की संख्या कम रही। उत्तर प्रदेश की मंडियों में सरकारी खरीद के चलते व्यापारी बाजार से दूरी बनाए हुए हैं।
दूसरी ओर, मक्का के बाजार में दक्षिण भारत (कर्नाटक, तेलंगाना) में पोल्ट्री फीड और स्टार्च इंडस्ट्री की ओर से कुछ मांग दिखाई दी, जिससे वहां भावों में ₹20–₹30 प्रति क्विंटल की मामूली तेजी आई। परंतु महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश और छत्तीसगढ़ की मंडियों में भाव स्थिर रहे। व्यापारी अभी बंपर खरीफ बुवाई और संभावित मानसून की अनिश्चितता के कारण बड़े सौदे करने से बच रहे हैं।
धान की बात करें तो फिलहाल मंडियों में पुरानी फसल की सीमित बिक्री जारी है, लेकिन खरीदारों की सक्रियता कम है। अधिकांश किसान खरीफ की बुवाई की तैयारियों में लगे हैं, जिससे धान के व्यापार में तेजी नहीं आ पा रही है। बासमती उत्पादक क्षेत्रों में भी इस समय व्यापार ठंडा है।
बाजार विश्लेषकों का मानना है कि जब तक मानसून का रुख स्पष्ट नहीं होता और सरकारी हस्तक्षेप समाप्त नहीं होता, तब तक अनाज बाजारों में स्थायित्व नहीं आएगा। ऐसे में निजी व्यापारी और स्टॉकिस्ट फिलहाल सटीक रणनीति के इंतज़ार में हैं।