होली अवकाश और मार्च के अंत में वित्तीय समापन के चलते दलहन और तिलहन व्यापार में सुस्ती रहने की संभावना है। त्योहारी मांग कमजोर पड़ने से सोयाबीन और मूंगफली तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है, जबकि चना की बढ़ती आवक के कारण इसके भावों में और नरमी की आशंका जताई जा रही है। मटर और उड़द के आयात की समय सीमा बढ़ने से भी इनके दामों पर.......पूरी खबर पढ़ने के लिए Amotrade डाउनलोड करें
होली अवकाश और मार्च के अंत में वित्तीय समापन के चलते दलहन और तिलहन व्यापार में सुस्ती रहने की संभावना है। त्योहारी मांग कमजोर पड़ने से सोयाबीन और मूंगफली तेल की कीमतों में गिरावट देखी जा रही है, जबकि चना की बढ़ती आवक के कारण इसके भावों में और नरमी की आशंका जताई जा रही है। मटर और उड़द के आयात की समय सीमा बढ़ने से भी इनके दामों पर दबाव देखने को मिल सकता है। काबुली चना कारोबार भी फिलहाल कमजोर बना हुआ है, जबकि तुअर की कीमतों में गिरावट का रुख जारी है।
ग्रीष्मकालीन फसलों के रकबे में पिछले साल की तुलना में 21.1% की बढ़ोतरी देखी गई है, जो अब 3.75 मिलियन हेक्टेयर तक पहुंच गया है। कृषि मंत्रालय द्वारा जारी 2024-25 के दूसरे अग्रिम फसल अनुमान में चावल, गेहूं और तिलहन का रिकॉर्ड उत्पादन होने की संभावना जताई गई है, जिससे आने वाले समय में बाजार में स्थिरता बनी रह सकती है। हालांकि, गेहूं की कीमतों में लगातार नरमी बनी हुई है, जिससे किसान सरकार की नीतियों से परेशान नजर आ रहे हैं।
ऑस्ट्रेलिया से चना आयात की पहली खेप भारतीय पोर्ट पर पहुंच गई है, और 1-2 और खेप जल्द ही आने की संभावना है। इससे घरेलू चना बाजार पर असर पड़ सकता है। वहीं, भारत और अमेरिका के बीच सोयाबीन तेल विवाद गहराता जा रहा है और इस मुद्दे को SOPA ने केंद्र सरकार के सामने उठाया है।
तमिलनाडु नागरिक आपूर्ति विभाग ने देशी तुअर ₹128/kg, आयातित तुअर ₹123/kg और कनाडा पिली मसूर ₹126/kg की दर से निविदा जारी की है, जिससे व्यापारियों में हलचल मची हुई है। सरकार ने दालों की बढ़ती कीमतों से राहत देने के लिए ड्यूटी-फ्री आयात अवधि बढ़ा दी है, जिससे दालें MSP से 10% तक नीचे आ सकती हैं।
इसके अलावा, मौसम विभाग के अनुसार चक्रवाती तूफान JADE 10 मार्च को मोजांबिक तट से टकराया है, जिससे वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला और समुद्री व्यापार पर असर पड़ सकता है। कुल मिलाकर, बाजार में फिलहाल मंदी का रुख है, लेकिन आने वाले हफ्तों में नीतिगत हस्तक्षेप और आयात-निर्यात गतिविधियों से व्यापार में हलचल बढ़ने की संभावना बनी हुई है।