पिछले दो सप्ताहों से नाफेड (NAFED) लगातार टेंडर के माध्यम से खुले बाजार में सोयाबीन की बिक्री कर रही है। मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार अब तक केंद्र सरकार द्वारा लगभग 5 से 6 लाख टन सोयाबीन टेंडरों के जरिए बेचा जा चुका है। इसके बावजूद, बाजार में कीमतों में कोई बड़ी गिरावट दर्ज नहीं की गई है, और सरकार की ओर से भावों पर एक तरह का नियंत्रण बना हुआ है।
फिलहाल नाफेड के पास लगभग 19 लाख टन सोयाबीन का विशाल भंडार मौजूद है, जिसे सरकार चरणबद्ध तरीके से बाजार में रिलीज़ कर रही है। हालांकि, पिछले 2 से 3 वर्षों में सोयाबीन बाजार में कोई विशेष तेजी देखने को नहीं मिली है। इसके चलते किसान लगातार अपनी उपज का स्टॉक रखने को मजबूर हैं, लेकिन बाजार उनकी उम्मीदों पर खरा नहीं उतर रहा है।
कई किसानों का मानना है कि मौजूदा बाजार भाव में लागत निकालना भी मुश्किल होता जा रहा है, और सरकार भी अभी तक सोयाबीन की कीमतों को समर्थन देने के लिए कोई ठोस कदम नहीं उठा रही है। इस स्थिति से निराश होकर मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों के किसान अब मक्का और धान जैसी अधिक लाभदायक एवं उत्पादक फसलों की ओर रुख करने लगे हैं।
वर्तमान में सोया तेल और सोया डीओसी की मांग सीमित बनी हुई है। भविष्य में भी इनमें बड़ी मांग की संभावना नजर नहीं आ रही है। इसके अलावा, प्रोसेसिंग प्लांट्स भी केवल आवश्यकता अनुसार ही सोयाबीन की खरीदारी कर रहे हैं। बाजार में ‘वेट एंड वॉच’ जैसी स्थिति बनी हुई है, जिसके चलते पिछले सप्ताह भावों में लगभग स्थिरता बनी रही।
आगे भी यदि नाफेड टेंडरों के माध्यम से कम भाव पर सोयाबीन बेचना जारी रखती है, तो बाजार में कीमतों में गिरावट की आशंका बनी रहेगी। मौजूदा मांग और आपूर्ति के संतुलन को देखते हुए फिलहाल सोयाबीन में तेज़ी की संभावना कम प्रतीत होती है।