6 मई 2025 की ताज़ा रिपोर्ट के अनुसार, देशभर की प्रमुख मंडियों में देसी चना के भावों में स्थिरता देखने को मिली है, जबकि काबुली चना की कीमतों में ₹100 प्रति क्विंटल की तेज़ी दर्ज की गई है। दिल्ली, इंदौर, नागपुर, हैदराबाद, रायपुर और सोलापुर जैसी मंडियों में देसी चना के सभी उपप्रकार पुराने भाव पर ही बिके। उदाहरण के तौर पर, इंदौर में केटवाला किस्म ₹6000–₹6050 और विशाल किस्म ₹5800–₹5850 प्रति क्विंटल पर बिकी, वहीं दिल्ली में राजस्थान लाइन ₹5800–₹5825 और मध्यप्रदेश लाइन ₹5700–₹5725 पर स्थिर रही। हैदराबाद में कर्नूल व महाराष्ट्र लाइन दोनों ₹5950–₹6000 के भाव पर बनी रहीं। नागपुर, रायपुर और लातूर सहित अन्य मंडियों में भी इसी तरह की स्थिरता देखने को मिली, जिससे यह संकेत मिलता है कि मंडी में मांग और आपूर्ति के बीच संतुलन बना हुआ है।
वहीं दूसरी ओर, काबुली चना में उछाल की प्रमुख वजह बाजार में बढ़ती मांग और सीमित आपूर्ति बताई जा रही है। इंदौर मंडी में काबुली चना की सभी गिनतियों में ₹100 प्रति क्विंटल की बढ़त दर्ज की गई—42-44 काउंट ₹11,400, 44-46 काउंट ₹11,100 और 58-60 काउंट ₹8600 तक पहुंच गया। मुंबई में सूडान काबुली चना ₹6400 प्रति क्विंटल पर स्थिर रहा, जिससे घरेलू और विदेशी काबुली चने के भाव में फर्क देखा गया। यह संकेत देता है कि उच्च गुणवत्ता वाले काबुली चने की मांग फिलहाल ऊंची बनी हुई है।
आयातित चने की बात करें तो, मुंबई, मुंद्रा और कोलकाता पोर्ट्स पर तंज़ानिया और ऑस्ट्रेलिया से आए चने की कीमतें स्थिर रहीं। मुंबई में तंज़ानिया चना ₹5600, ऑस्ट्रेलिया चना ₹5800, मुंद्रा में ₹5700 और कोलकाता में ₹5900–₹5950 प्रति क्विंटल पर बिका। इसका अर्थ यह है कि वैश्विक बाजार की स्थिरता फिलहाल घरेलू व्यापार को कोई नया दबाव नहीं दे रही है।
अगर बात करें मंडी आवकों की, तो महाराष्ट्र के लातूर में सबसे अधिक 7000 बोरी (50 किग्रा) की आवक दर्ज की गई, इसके बावजूद भाव ₹5600–₹5800 पर स्थिर रहे। मध्यप्रदेश के सागर में 50,000 बोरी की सबसे भारी आवक हुई और कीमतें ₹5400–₹5500 के बीच स्थिर बनी रहीं। कर्नाटक के गडग, गुजरात के राजकोट, राजस्थान के कोटा और राजस्थान के बीकानेर जैसे मंडियों में भी सामान्य आवक रही और भावों में कोई असामान्य उतार-चढ़ाव नहीं देखा गया।
कुल मिलाकर, देसी चना की कीमतों में स्थिरता से बाजार में संतुलन का संकेत मिल रहा है, जबकि काबुली चना की बढ़ती कीमतें व्यापारी और किसानों दोनों के लिए लाभदायक हो सकती हैं। आने वाले दिनों में यदि मांग इसी तरह बनी रही और आवक सीमित रही, तो काबुली चने की कीमतों में और तेज़ी संभव है।