सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (सोपा) ने आगामी तेल वर्ष 2025-26 के लिए सोयाबीन के बचे हुए स्टॉक में 59% की भारी गिरावट का अनुमान लगाया है। सोपा के अनुसार, कैरीओवर स्टॉक केवल 3.66 लाख टन रह सकता है, जो पिछले वर्ष के 8.94 लाख टन से काफी कम है। यह गिरावट भविष्य में आपूर्ति में कमी का संकेत देती है, जिससे कीमतों को सहारा मिल सकता है।
11 अगस्त 2025 तक देश में कुल सोयाबीन स्टॉक, जिसमें नैफेड और एनसीसीएफ की होल्डिंग शामिल है, 21.13 लाख टन दर्ज किया गया। जुलाई तक पेराई गतिविधि 96 लाख टन रही, जबकि पिछले वर्ष इसी अवधि में यह 104.50 लाख टन थी। प्रत्यक्ष खपत 4.55 लाख टन और निर्यात मात्र 0.10 लाख टन दर्ज किया गया।
सोयामील का उत्पादन घटकर 75.75 लाख टन रहा, जो पिछले वर्ष के 19.24 लाख टन के निर्यात से घटकर 17.08 लाख टन पर आ गया। इसमें जर्मनी सबसे बड़ा आयातक रहा, जिसके बाद फ्रांस, नेपाल, बांग्लादेश और केन्या का स्थान रहा। चारा उद्योग की मांग 56 लाख टन से घटकर 52 लाख टन रही, जबकि खाद्य क्षेत्र की उठान स्थिर 6.85 लाख टन पर बनी रही।
कृषि मोर्चे पर, सरकारी आंकड़ों के अनुसार सोयाबीन की बुवाई का क्षेत्र 119.51 लाख हेक्टेयर है, लेकिन सोपा का अनुमान 115.20 लाख हेक्टेयर का है। इसका कारण मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और राजस्थान में कुछ किसानों का मक्का और दालों जैसी वैकल्पिक फसलों की ओर रुख करना है।
महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश के अधिकांश हिस्सों में फसल की स्थिति संतोषजनक है, हालांकि कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा के कारण जलभराव और विकास में देरी की समस्या देखी गई है। लगभग 70% फसल वर्तमान में फूल आने की अवस्था में है, जिससे समय पर प्रबंधन आने वाले उपज परिणामों के लिए अहम होगा।
कम स्टॉक, घटते उत्पादन और स्थिर मांग के बीच, सोयाबीन की कीमतों में आने वाले महीनों में मजबूती देखने को मिल सकती है। हालांकि, मौसम की स्थिति और वैश्विक मांग के रुझान इस पर निर्णायक प्रभाव डालेंगे।