तुवर दाल बाजार में आयात सौदों की सस्ती चाल: उत्पादन घटा, खपत पर असर
आयात सौदों के बहाने भारी मात्रा में सस्ता माल झटक लिया गया, जिससे उत्तर भारत की दाल मिलें किल्लत से जूझ रही हैं। रंगून से आने वाले आयात सौदों पर भी ब्रेक लग गया है। व्यापारी पीछे हट गए हैं और तय सौदों को औने-पौने भाव पर काटने की नौबत आ गई। दाल मिलें मिलिंग के लिए तुवर के माल को तरस रही हैं। इस बीच, खेती में लगातार गिरावट ने संकट और गहरा दिया है।
पिछले दो महीनों में तुवर बाजार में सटोरियों की सस्ती चालबाज़ी ने तहलका मचा दिया। आयात सौदों के बहाने भारी मात्रा में सस्ता माल झटक लिया गया, जिससे उत्तर भारत की दाल मिलें किल्लत से जूझ रही हैं।
रंगून से आने वाले आयात सौदों पर भी ब्रेक लग गया है। व्यापारी पीछे हट गए हैं और तय सौदों को औने-पौने भाव पर काटने की नौबत आ गई। दाल मिलें मिलिंग के लिए तुवर के माल को तरस रही हैं। इस बीच, खेती में लगातार गिरावट ने संकट और गहरा दिया है।
⚠️ क्या है बड़ी समस्या?
- तुवर की खेती लगातार घट रही है, जिससे उत्पादन खपत के मुकाबले सिर्फ 50% ही रह गया है।
- रबी सीजन की मुख्य फसल अप्रैल में आएगी, लेकिन इस बार बिजाई भी उम्मीद के मुताबिक नहीं है।
- रंगून में फसल बढ़िया है, लेकिन वह मार्च-अप्रैल से पहले भारत नहीं पहुंचेगी। तब तक बाजार में माल की भारी कमी बनी रहेगी।
🌟 क्या कहते हैं विशेषज्ञ?
बाजार में तुवर की कीमतों पर मंदी के कोई संकेत नहीं दिख रहे हैं। मांग और आपूर्ति में बड़ा अंतर इसकी कीमतों को मजबूती दे रहा है।
नतीजा:
तुवर बाजार की मौजूदा स्थिति और कमजोर उत्पादन ने कीमतों को नई ऊंचाइयों की ओर धकेल दिया है। आने वाले महीनों में फसल और आयात की स्थिति बाजार की दिशा तय करेंगे।