दाल और तिलहन बाजार का हाल: अरहर, चना, सरसों और सोयाबीन की कीमतों पर दबाव

दाल और तिलहन बाजार में इन दिनों उतार-चढ़ाव देखा जा रहा है। अरहर की कीमतों में हल्की नरमी है, लेकिन त्योहारी मांग के चलते थोड़ी बढ़ोतरी की उम्मीद है। चना में मुनाफावसूली से हल्की गिरावट हो सकती है, लेकिन खपत के सीजन और आयातित माल की आवक से कोई बड़ी तेजी की संभावना नहीं है। सरसों और सोयाबीन के बाजार में फिलहाल स्थिरता है, और लंबी तेजी की उम्मीद तब तक नहीं की जा सकती जब तक आयात बढ़ता न हो। दाल मिलों और तिलहन व्यापारियों को नियमित आधार पर व्यापार करने की सलाह दी जा रही है।

Opinion 18 Dec 2024
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दाल और तिलहन बाजार में इन दिनों हलचल जारी है। अरहर की कीमतों में मिलाजुला रुख देखने को मिल रहा है। त्योहारी सीजन में पोंगल और संक्रांति के चलते दाल मिलों की मांग बढ़ने की संभावना है। हालांकि, कर्नाटक और महाराष्ट्र की मंडियों में नई फसल की आवक बढ़ने से बाजार में हल्का सुधार संभव है। दाल मिलें इस समय केवल जरूरत के अनुसार खरीद कर रही हैं, क्योंकि नई फसल आने से कीमतों पर दबाव बन सकता है। केंद्र सरकार भी अरहर की कीमतों पर नजर बनाए हुए है, जिससे तेजी-मंदी का रुख नई आवक पर निर्भर करेगा।

चना बाजार में स्टॉकिस्टों की मुनाफावसूली के कारण हल्की गिरावट की संभावना है। उत्पादक राज्यों में अच्छी क्वालिटी के चने की किल्लत बनी हुई है, जबकि घरेलू नई फसल आने में अभी कुछ महीने शेष हैं। खपत के सीजन के कारण दाल मिलों की खरीद बनी रहेगी, लेकिन आयातित चने की शिपमेंट बढ़ने से बड़ी तेजी के आसार कम हैं। ऑस्ट्रेलिया से 33,000 टन चना लेकर एक जहाज 23 दिसंबर को मुंबई बंदरगाह पर पहुंचने की उम्मीद है। विशेषज्ञों की सलाह है कि चने में मौजूदा तेजी का फायदा उठाते हुए माल निकालते रहें।

तिलहन बाजार में सरसों और सोयाबीन की स्थिति स्थिर बनी हुई है। ये भारत की प्रमुख फसलें हैं, जिन्हें किसान एमएसपी के अच्छे भाव की उम्मीद में उगाते हैं। पाम तेल की कीमतों में उतार-चढ़ाव का भारतीय तिलहनों पर कोई खास असर नहीं दिखा है। ऐसे में सरसों और सोयाबीन में लंबी तेजी की उम्मीद तब तक नहीं की जा सकती, जब तक आयात बढ़ता रहेगा और वायदा बाजार को नया समर्थन नहीं मिलेगा। मौजूदा हालात में व्यापार को नियमित आधार पर करते रहने की सलाह दी जा रही है।

कुल मिलाकर, दाल और तिलहन बाजार में कीमतों पर नई आवक, सरकारी समीक्षा और आयात का दबाव बना हुआ है। विशेषज्ञों का मानना है कि फसल की स्थिति और बाजार की मांग के आधार पर ही आगामी रुझान तय होंगे।

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