गेहूं की ओर बढ़ते किसान: चना की खेती में 25% गिरावट का अनुमान
इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के कई जिलों, जैसे देवास, अशोकनगर और नरसिंहपुर में चना के बजाय गेहूं की बुवाई बढ़ रही है। व्यापारियों के मुताबिक, पिछले साल चना के करीब 30% क्षेत्र में अब गेहूं की खेती हो रही है, जिससे चने के रकबे में 20-25% की कमी आने की संभावना है।
मध्य प्रदेश और राजस्थान जैसे प्रमुख चना उत्पादक राज्यों में इस रबी सीजन में किसानों का झुकाव गेहूं की खेती की ओर बढ़ा है। बेहतर पैदावार, उच्च रिटर्न और जल संसाधनों की पर्याप्त उपलब्धता इस बदलाव के मुख्य कारण हैं।
चना से गेहूं की ओर रुझान
इंडिया पल्सेस एंड ग्रेन्स एसोसिएशन की रिपोर्ट के अनुसार, मध्य प्रदेश के कई जिलों, जैसे देवास, अशोकनगर और नरसिंहपुर में चना के बजाय गेहूं की बुवाई बढ़ रही है। व्यापारियों के मुताबिक, पिछले साल चना के करीब 30% क्षेत्र में अब गेहूं की खेती हो रही है, जिससे चने के रकबे में 20-25% की कमी आने की संभावना है।
उपज और कीमतों का प्रभाव
2023-24 में गेहूं की औसत उपज 3,559 किग्रा/हेक्टेयर रही, जबकि चने की उपज 1,151 किग्रा/हेक्टेयर थी। गेहूं की कीमतें भी स्थिर हैं और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक चल रही हैं। दिल्ली और कोटा जैसे बाजारों में गेहूं की कीमतें 3,200 रुपये/क्विंटल तक पहुंच चुकी हैं, जबकि चने की कीमतें गिरकर 7,000 रुपये/क्विंटल के आसपास हैं।
क्लाइमेट और जल संसाधनों का असर
इस साल मानसून के बेहतर प्रदर्शन और जलाशयों में सामान्य से अधिक पानी ने गेहूं की बुवाई के लिए अनुकूल परिस्थितियां पैदा की हैं। मध्य प्रदेश और राजस्थान में पर्याप्त बारिश और मिट्टी की नमी ने इस प्रवृत्ति को बढ़ावा दिया है।
अन्य राज्यों में स्थिति अलग
महाराष्ट्र, गुजरात, और कर्नाटक जैसे राज्यों में गेहूं की खेती का विस्तार नहीं हो सकता, क्योंकि इन क्षेत्रों की जलवायु और तापमान गेहूं के लिए उपयुक्त नहीं हैं।
यह बदलाव सरकार और उपभोक्ताओं के लिए सकारात्मक हो सकता है, क्योंकि भारत में गेहूं की मांग चने से अधिक है। लेकिन चने की खेती में गिरावट से दाल बाजार पर असर पड़ सकता है।