नई दिल्ली: बढ़ती मांग के चलते वित्तीय वर्ष 2023-24 में दालों का आयात छह साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गया। इस स्थिति से निपटने के लिए सरकार पूर्वी और मध्य भारत के गैर-पारंपरिक धान उगाने वाले क्षेत्रों को दाल उत्पादन की ओर आकर्षित करने की योजना बना रही है। इसके लिए निश्चित खरीद व्यवस्था और गुणवत्तापूर्ण बीजों की उपलब्धता सुनिश्चित की जाएगी।
एक अधिकारी ने बताया कि 2024-25 फसल वर्ष (जुलाई-जून) से राष्ट्रीय कृषि सहकारी विपणन संघ (NAFED) और राष्ट्रीय सहकारी उपभोक्ता संघ (NCCF) जैसी एजेंसियां उन किसानों का पूर्व-पंजीकरण कर रही हैं, जो तुअर, उड़द और मसूर की खेती करेंगे। इन किसानों से सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के तहत निश्चित रूप से दाल खरीदेगी।
वर्तमान में देश में दालों की खेती केवल 55 जिलों तक सीमित है, जो मुख्य रूप से मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, कर्नाटक और राजस्थान में स्थित हैं। इस योजना के तहत अब तक 21 लाख किसानों को पंजीकृत किया जा चुका है। सरकार मूल्य स्थिरीकरण कोष (Price Stabilisation Fund) और मूल्य समर्थन योजना (PSS) के तहत किसानों से दालों की खरीद करेगी।
पिछले दो वर्षों में दालों की कीमतें MSP से अधिक होने के कारण सरकारी एजेंसियां इनका अधिक मात्रा में खरीद नहीं कर पाईं। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपने बजट भाषण में कहा कि अगले चार वर्षों तक NAFED और NCCF किसानों द्वारा पेश की गई पूरी दाल खरीदेगी, बशर्ते उन्होंने इन एजेंसियों के साथ समझौता किया हो।
देश में दाल उत्पादन 2019-20 के 23.02 मिलियन टन से बढ़कर 2023-24 में 24.24 मिलियन टन हो गया है, हालांकि 2021-22 में यह 27.3 मिलियन टन तक पहुंचा था। बढ़ती आय के कारण दालों की मांग तेजी से बढ़ी है, जबकि उत्पादन में अपेक्षित वृद्धि नहीं हो पाई।
दाल उत्पादन बढ़ाने के लिए सरकार का मुख्य लक्ष्य जलवायु अनुकूल बीजों की उपलब्धता, उत्पादन वृद्धि और किसानों को उचित मूल्य दिलाना है। पिछले पांच वर्षों में भारत ने अपनी कुल वार्षिक खपत का 11% दालों का आयात किया है, जिसमें कनाडा, रूस, ऑस्ट्रेलिया, म्यांमार, तंजानिया, मलावी और मोज़ाम्बिक प्रमुख आपूर्तिकर्ता रहे हैं।
कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) की रिपोर्ट के अनुसार, 2023-24 में दालों का आयात 4.8 मिलियन टन तक पहुंच गया, जो पिछले छह वर्षों में सबसे अधिक है। आयोग ने सिफारिश की है कि गुणवत्तापूर्ण बीज, क्षेत्र-विशिष्ट तकनीकों और किसानों को लाभकारी मूल्य सुनिश्चित किया जाना चाहिए, जिससे देश को दाल उत्पादन में आत्मनिर्भर बनाया जा सके।