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दाल उद्योग मंडी टैक्स और जीएसटी की दोहरी मार से परेशान, मुख्यमंत्री को सौंपा ज्ञापन

एमएसएमई श्रेणी में शामिल होने के बावजूद दाल उद्योगों को किसी प्रकार की राहत नहीं मिल रही है। इसके विपरीत, इन उद्योगों पर दोहरे टैक्स का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें स्पष्ट रूप से मांग की गई है कि प्रदेश में मंडी टैक्स से दलहन और अन्य अनाजों को पूरी तरह से छूट दी जाए। एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री का ध्यान इस ओर दिलाया कि टैक्स के इस दोहरे दबाव के चलते राज्य से दाल मिलें अन्य प्रदेशों की ओर पलायन कर रही हैं, जिससे उद्यो......

Business 28 Jul  Nai Dunia
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एमएसएमई श्रेणी में शामिल होने के बावजूद दाल उद्योगों को किसी प्रकार की राहत नहीं मिल रही है। इसके विपरीत, इन उद्योगों पर दोहरे टैक्स का बोझ लगातार बढ़ता जा रहा है। ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन ने मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को एक ज्ञापन सौंपा है, जिसमें स्पष्ट रूप से मांग की गई है कि प्रदेश में मंडी टैक्स से दलहन और अन्य अनाजों को पूरी तरह से छूट दी जाए। एसोसिएशन ने मुख्यमंत्री का ध्यान इस ओर दिलाया कि टैक्स के इस दोहरे दबाव के चलते राज्य से दाल मिलें अन्य प्रदेशों की ओर पलायन कर रही हैं, जिससे उद्योगों के संचालन पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं।

ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन के अध्यक्ष सुरेश अग्रवाल तथा पदाधिकारी, पूर्व सांसद और पूर्व महापौर कृष्णमुरारी मोघे के साथ मुख्यमंत्री से भेंट करने भोपाल पहुंचे। प्रतिनिधिमंडल ने बताया कि मध्यप्रदेश में दलहन पर मंडी टैक्स लगाया जा रहा है, और यह टैक्स केवल राज्य की उपज पर ही नहीं बल्कि अन्य प्रदेशों या विदेशों से आयात की गई दालों पर भी वसूला जा रहा है। यदि कोई व्यापारी किसी अन्य राज्य से दलहन खरीदकर मप्र लाता है तो उसे जहां से वह माल खरीद रहा है, वहां या केंद्र सरकार को एक बार टैक्स देना ही पड़ता है। लेकिन मध्यप्रदेश में उसी माल पर एक बार फिर मंडी टैक्स देय होता है। नतीजतन, राज्य में दाल उद्योग दोहरे टैक्स के कारण अस्वस्थ प्रतिस्पर्धा का सामना कर रहा है।

दूसरे राज्यों की तुलना में यह नीति असमान और असंतुलित है। उदाहरण के तौर पर, छत्तीसगढ़ में अनाज और दलहन को पूरी तरह से मंडी टैक्स से छूट दी गई है। गुजरात और महाराष्ट्र जैसे औद्योगिक रूप से उन्नत राज्यों में भी बाहरी दलहन पर मंडी टैक्स नहीं लिया जाता। जबकि मध्यप्रदेश में बाहरी माल पर दोबारा टैक्स लगाना व्यापारिक दृष्टिकोण से बाधक सिद्ध हो रहा है। इसके चलते राज्य की दाल मिलें जलगांव, अकोला, दाहोद और आणंद जैसे अन्य राज्यों के औद्योगिक शहरों की ओर स्थानांतरित हो रही हैं, जिससे प्रदेश के रोजगार, निवेश और आर्थिक विकास पर प्रतिकूल असर पड़ रहा है।

उद्योग से जुड़े एक अन्य प्रमुख मुद्दे को लेकर ऑल इंडिया दाल मिल एसोसिएशन की वार्षिक बैठक इंदौर में आयोजित की जा रही है, जिसमें देशभर के दाल मिलर्स भाग लेंगे। इस बैठक में दालों पर लगाए जा रहे 5 प्रतिशत जीएसटी का विषय भी केंद्र में रहेगा। एसोसिएशन का कहना है कि जीएसटी लागू होने से पहले दालों पर किसी भी प्रकार का टैक्स या वाणिज्यिक कर नहीं लगाया जाता था, लेकिन अब 5% जीएसटी लगने के कारण लागत मूल्य में वृद्धि हो रही है, जिससे अंततः इसका प्रभाव उपभोक्ताओं और बाजार पर भी पड़ रहा है।

एसोसिएशन ने यह निर्णय लिया है कि वह विभिन्न प्रदेशों के माध्यम से जीएसटी काउंसिल तक इस मुद्दे को पहुंचाएगा और केंद्र सरकार से यह मांग रखेगा कि दालों को जीएसटी से राहत दी जाए। उनका मानना है कि दाल जैसे आवश्यक खाद्य पदार्थों पर कर लगाना सामाजिक और आर्थिक दोनों दृष्टियों से अनुचित है, और इससे देश की खाद्य सुरक्षा नीति भी प्रभावित होती है।

दाल उद्योग से जुड़े व्यापारी और उद्यमी लंबे समय से इस दोहरे कर व्यवस्था को लेकर परेशान हैं। यदि शीघ्र कोई नीति बदलाव नहीं हुआ, तो दाल मिलों का मप्र से पलायन और तेज़ हो सकता है। इससे न केवल राज्य का राजस्व प्रभावित होगा, बल्कि रोजगार के अवसरों में भी गिरावट आएगी। एसोसिएशन द्वारा सौंपे गए ज्ञापन में सरकार से आग्रह किया गया है कि वह इस गंभीर मुद्दे को प्राथमिकता से लेते हुए प्रदेश के दाल उद्योग को संरक्षण देने हेतु तत्काल नीति निर्णय ले।

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