भारतीय गेहूं की कीमतें इन दिनों रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई हैं। इसका मुख्य कारण है बाजार में सीमित आपूर्ति और सरकार द्वारा अपने भंडार से स्टॉक जारी करने में हो रही देरी। मध्य प्रदेश के इंदौर में गेहूं की कीमतें लगभग 30,000 रुपये प्रति मीट्रिक टन तक पहुंच गई हैं, जो अप्रैल में 24,500 रुपये थी और सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम समर्थन मूल्य 22,750 रुपये से काफी अधिक है।
डीलरों और आटा मिलर्स के अनुसार, स्टॉकिस्ट कम कीमतों पर गेहूं जारी करने के लिए तैयार नहीं हैं, और अगर सरकार जल्द ही भंडार से स्टॉक जारी नहीं करती है, तो कीमतें और बढ़ने की संभावना है। नवंबर की शुरुआत में सरकारी गोदामों में गेहूं का स्टॉक 223 लाख टन था, जो पिछले साल के 219 लाख टन से थोड़ा अधिक है, लेकिन पांच साल के औसत 325 लाख टन से काफी कम है।
सरकार ने सितंबर में व्यापारियों और मिलर्स द्वारा रखे जाने वाले स्टॉक की सीमा कम करने जैसे कदम उठाए, लेकिन इनका असर सीमित रहा। विशेषज्ञों का कहना है कि नई फसल मार्च से पहले बाजार में आने की संभावना नहीं है, जिससे थोक खरीदारों पर दबाव बढ़ रहा है।
पिछले साल, सरकार ने जून में अपने भंडार से गेहूं बेचना शुरू किया था और मार्च 2024 तक लगभग 100 लाख टन गेहूं जारी किया, जिससे थोक खरीदारों को राहत मिली। इस साल जुलाई से गेहूं बेचने की योजना के बावजूद अब तक कोई कार्रवाई नहीं की गई है। बाजार विशेषज्ञों का मानना है कि सरकारी हस्तक्षेप की कमी कीमतों को और अधिक अस्थिर कर सकती है।