चना बाजार में इस सप्ताह स्थिरता के साथ हल्की मजबूती का रुख देखने को मिला है। प्रमुख मंडियों में भाव घटने पर बिकवाली लगभग गायब हो गई है, जिससे बाजार में एक सपोर्ट बना हुआ है। हालांकि चना दाल में ग्राहकी फिलहाल नीरस बनी हुई है, जिससे मिलर्स केवल ज़रूरत के अनुसार ही खरीदी कर रहे हैं। मिलर्स के लिए सबसे बड़ी चुनौती यह है कि बाजार में सस्ते में चना उपलब्ध नहीं है और ऊँचे भाव पर दाल की मांग सुस्त बनी हुई है।
जानकारों का कहना है कि चना की आवक का पीक सीजन अब लगभग समाप्त हो चुका है और विभिन्न राज्यों में आने वाले दिनों में इसकी आवक धीरे-धीरे कम हो सकती है। यह एक ऐसा संकेत है, जो लंबी अवधि में भावों को मजबूती दे सकता है।
चना में मौजूदा मजबूती के पीछे कई मुख्य कारण हैं:
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स्टॉकिस्टों की तेज़ खरीदी और सक्रियता।
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सरकारी बफर स्टॉक में रिकॉर्ड स्तर पर गिरावट।
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MSP के ऊपर चल रहे भावों के कारण सरकारी खरीद में सुस्ती।
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सरकार द्वारा चना के आयात पर 10% शुल्क लागू करना।
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ऑस्ट्रेलिया से आयातित चना की लागत अब काफी ऊँची होना।
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तंज़ानिया में भी चना उत्पादन का कमजोर अनुमान।
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विदेशी मटर आयात में गिरावट के कारण विकल्प सीमित होना।
वहीं, सरकार के पास चना की अप्रत्याशित तेजी को नियंत्रित करने के कई विकल्प मौजूद हैं। यदि भाव अधिक बढ़ते हैं, तो मटर को विकल्प के तौर पर उपयोग में लाया जा सकता है, जिससे चना पर दबाव पड़ सकता है।
चना व्यापारियों के लिए सलाह:
अगर आपके पास पहले से चना का स्टॉक है, तो दिल्ली चना (राजस्थान लाइन) 5700 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को एक मजबूत सपोर्ट मानकर रणनीति बनाएं। यदि नई खरीदी की योजना है, तो अगले सप्ताह के अंत तक बाज़ार की स्थिति का विश्लेषण करना उचित रहेगा। विश्लेषकों का मानना है कि यदि दिल्ली चना 5950 रुपये का रेजिस्टेंस तोड़ता है, तो इसमें और मजबूती देखने को मिल सकती है।
कुल मिलाकर, बाजार फिलहाल संतुलन में है, लेकिन धीरे-धीरे मजबूत संकेत बन रहे हैं। आने वाले सप्ताहों में सरकारी नीति और मिलर्स की मांग के आधार पर भावों की दिशा तय होगी।