चना बाजार में हालिया आई तेजी लंबे समय तक टिकाऊ नहीं दिख रही है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात की मंडियों में निरंतर आवक बनी हुई है, लेकिन भाव.........पूरी खबर पढ़ने के लिए Amotraade डाउनलोड करें
चना बाजार में हालिया आई तेजी लंबे समय तक टिकाऊ नहीं दिख रही है। मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात की मंडियों में निरंतर आवक बनी हुई है, लेकिन भाव बढ़ने के कारण स्टॉकिस्ट ऊँचे रेट पर चना का स्टॉक करने लगे हैं। ऐसे में जब किसान ऊँचे भाव देखकर मंडियों में तेज़ी से बिकवाली कर रहा है, वहीं व्यापारी अधिक भाव पर स्टॉक करके जोखिम में आ सकते हैं।
सरकार की नीति स्पष्ट दिखाई दे रही है—वह चाहती है कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) का लाभ किसानों को मिल सके, और सरकारी खरीद का बोझ भी कम रहे। चना की फसल इस वर्ष अधिकांश राज्यों में औसत और कुछ क्षेत्रों में औसत से बेहतर बताई जा रही है, जिससे बाजार में सप्लाई की कोई कमी नहीं है।
इसके अलावा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भी दबाव बढ़ रहा है। अब तक ऑस्ट्रेलिया से करीब 13.5 से 14 लाख टन चना भारत आ चुका है। 10% आयात शुल्क लागू होने के बाद भी लगभग 3.5–4 लाख टन चना वहां से आना शेष है। साथ ही कनाडा और रूस से आयातित मटर, तथा तंजानिया से आया हुआ चना भविष्य में बाजार में अतिरिक्त आपूर्ति लाकर मंदी का कारण बन सकते हैं।
विशेषज्ञों की राय है कि जिन व्यापारियों के पास शुरुआत में कम भाव पर खरीदा गया चना है, उन्हें अब मुनाफावसूली करके निकल जाना चाहिए, क्योंकि बाजार में तेज़ी का दौर धीरे-धीरे मंदी में बदल सकता है। यदि भविष्य में चना की कीमतों में एक और तेज़ी आती है, तो सरकार आयात शुल्क में कटौती पर भी विचार कर सकती है, जिससे बाजार पर और नकारात्मक असर पड़ेगा।
इसलिए फिलहाल चना बाजार में सतर्कता जरूरी है। व्यापारीगण जल्दबाज़ी में स्टॉक बढ़ाने के बजाय स्थिति का सही मूल्यांकन करें और लाभ के साथ निकासी पर विचार करें।