नई दिल्ली, जुलाई 21: काबुली चने के बाजार में फिर से मजबूती के संकेत मिल रहे हैं। घरेलू बाजारों में जहां स्थिर डिमांड बनी हुई है, वहीं बाजार में माल की उपलब्धता बेहद सीमित हो गई है। इस समय कोल्ड स्टोरेज में रखे माल की बिकवाली काफी कम हो रही है। व्यापारियों के अनुसार, केवल 10% स्टॉकिस्ट ही वर्तमान भावों पर माल बेचने के लिए तैयार हैं, जबकि करीब 80% व्यापारी अभी भी अपने स्टॉक को होल्ड किए हुए हैं और ऊंचे भाव का इंतजार कर रहे हैं।
मांग और आपूर्ति के असंतुलन ने बढ़ाया बाजार का उत्साह
पिछले कुछ सप्ताहों में घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर काबुली चने की मांग में धीरे-धीरे सुधार देखा गया है। खासकर मध्य पूर्व और यूरोप से आयातकों की रुचि बढ़ने लगी है, जबकि दूसरी ओर भारतीय बाजार में उपलब्ध स्टॉक तेजी से घटता जा रहा है। कर्नाटक और मध्य प्रदेश जैसे प्रमुख उत्पादक राज्यों में इस बार उत्पादन अपेक्षा से कम रहा है, जिससे बाजार में सप्लाई की स्थिति और भी कमजोर बनी हुई है।
व्यापारियों की राय: एक्सपोर्ट मांग बनी तो ₹1000/क्विंटल तक उछाल संभव
दिल्ली, इंदौर और नागपुर जैसे प्रमुख व्यापारिक हब में कारोबारियों का कहना है कि यदि निर्यात मांग और मजबूत होती है, तो काबुली चने के दामों में ₹800 से ₹1000 प्रति क्विंटल तक की तेजी आ सकती है। एक्सपोर्टर पहले ही हल्की मात्रा में बुकिंग करना शुरू कर चुके हैं, लेकिन उन्हें पर्याप्त मात्रा में क्वालिटी माल उपलब्ध नहीं हो रहा।
12500 की ओर भाव बढ़ने की संभावना
बाजार विश्लेषकों और व्यापारियों का मानना है कि आगामी 5 अगस्त तक काबुली चना का भाव ₹12,500/क्विंटल के स्तर तक पहुंच सकता है। वर्तमान में उच्च क्वालिटी काबुली चना ₹11,400 से ₹11,800/क्विंटल के आसपास ट्रेड कर रहा है, लेकिन सीमित सप्लाई और लगातार बनी मांग के चलते आने वाले सप्ताहों में यह तेजी से ऊपर जा सकता है।
क्यों नहीं बेच रहे व्यापारी माल?
इस बार छोटे और मझोले व्यापारियों ने भी काफ़ी पहले से माल होल्ड कर रखा है। उनका मानना है कि जुलाई के अंत और अगस्त के पहले सप्ताह तक काबुली चने में भारी उछाल आ सकती है, क्योंकि त्योहारी सीजन नज़दीक है और एक्सपोर्ट मांग भी बढ़ रही है। ऐसे में वे अभी बेचना नहीं चाहते और अधिक लाभ की उम्मीद में स्टॉक रोक कर बैठे हैं।
क्या जोखिम भी हैं?
हालांकि बाजार में तेजी के संकेत स्पष्ट हैं, लेकिन कुछ व्यापारियों का यह भी मानना है कि यदि सरकार द्वारा अचानक किसी नीतिगत बदलाव की घोषणा की गई या आयात को लेकर कोई छूट दी गई, तो तेजी पर ब्रेक लग सकता है। साथ ही अगर घरेलू मंडियों में अचानक बिकवाली शुरू होती है तो यह संभावित तेजी सीमित भी हो सकती है।