तुअर (अरहर) के बाजार में इस सप्ताह मिश्रित रुझान देखने को मिला है। तुअर दाल में कमजोर मांग के चलते मिलर्स केवल जरूरत के अनुसार ही खरीदारी कर रहे हैं, जिससे तुअर के भावों में कोई विशेष तेजी नहीं देखी गई। इस वर्ष तुअर में स्टॉकिस्टों की भागीदारी भी काफी कम रही है, जिससे बाजार में अधिक उठाव नहीं आ सका है।
हालांकि, न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे चल रहे भावों के कारण किसान अपनी उपज को सरकार को MSP पर बेचना ज्यादा पसंद कर रहे हैं। नतीजन, सरकारी खरीदी में तेजी आई है। 8 अप्रैल 2025 तक नैफेड और एनसीसीएफ ने संयुक्त रूप से 3.08 लाख टन तुअर की खरीदी कर ली है। महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में यह खरीदी अभियान चल रहा है, जिसमें कर्नाटक और महाराष्ट्र की हिस्सेदारी सबसे अधिक है।
तुअर की सप्लाई-डिमांड की बात करें, तो इस वर्ष देश में पर्याप्त तुअर की आपूर्ति रहने की संभावना है। कैरी फॉरवर्ड स्टॉक और आयात को मिलाकर देश में कुल तुअर की उपलब्धता 35 लाख टन से अधिक होने का अनुमान है, जो कि देश की वार्षिक खपत से भी अधिक है। इससे बाजार में संतुलन बना रहने की संभावना है।
व्यापारियों का मानना है कि अकोला बिल्टी तुअर का व्यापार आने वाले समय में 7400 से 7800 रुपये प्रति क्विंटल की रेंज में सीमित रह सकता है। इस समय अधिक गर्मी के कारण तुअर दाल की खपत में गिरावट की संभावना है। साथ ही, आम के मौसम की शुरुआत और जैसे-जैसे आम सस्ते होंगे, उपभोक्ताओं की प्राथमिकता बदलने के कारण तुअर दाल की मांग पर दबाव आ सकता है।
फिलहाल बाजार में कोई खास तेजी की संभावना नहीं दिख रही, लेकिन यदि सरकारी खरीदी और मौसम संबंधी परिस्थितियां अनुकूल बनी रहती हैं, तो भावों में स्थिरता संभव है। व्यापारियों को फिलहाल सावधानी से और आवश्यकतानुसार ही लेन-देन करने की सलाह दी जा रही है।