फूड कॉरपोरेशन ऑफ इंडिया (एफसीआई) का पहला साप्ताहिक ई-नीलामी कार्यक्रम 4 दिसंबर को आयोजित किया जाएगा, जिसमें 1 लाख टन गेहूं की बिक्री होगी। यह बिक्री विभिन्न राज्यों को आवंटित की जाएगी, जिसमें कर्नाटक, बिहार, गुजरात, हरियाणा, राजस्थान और महाराष्ट्र के लिए 5,000 टन का आवंटन शामिल है।
नई नीति के अनुसार, जिन मिलर्स के पास उनके मासिक प्रसंस्करण क्षमता से अधिक स्टॉक है, उन्हें टेंडर प्रक्रिया से बाहर रखा जाएगा। यह कदम गेहूं को ट्रेडिंग के बजाय वास्तविक उपयोग के लिए सुनिश्चित करने के लिए उठाया गया है। हालांकि, कुछ मिलर्स ने इस नीति को लेकर असंतोष जताया है और इसे "प्राइवेट पार्टियों को इनाम" करार दिया है।
नई शर्तों के तहत, बोलीदाता को एक घोषणा पत्र देना होगा कि उनके पास उनकी मासिक क्षमता से अधिक स्टॉक नहीं है। अगर किसी मिलर की मासिक प्रसंस्करण क्षमता 2,500 टन है और उनके पास वर्तमान में 2,450 टन का स्टॉक है, तो वे केवल 50 टन के लिए बोली लगा सकते हैं।
सरकार ने 25 लाख टन गेहूं ओपन मार्केट सेल्स स्कीम (OMSS) के तहत मार्च 2025 तक बाजार में उतारने की योजना बनाई है। इसका उद्देश्य खुले बाजार में गेहूं की कीमतों को नियंत्रित करना है।
एफसीआई ने गेहूं की आरक्षित कीमत ₹2,325 प्रति क्विंटल (सामान्य गुणवत्ता) और ₹2,300 प्रति क्विंटल (विशेष श्रेणी) तय की है। बोली लगाने वालों को परिवहन लागत और अन्य कर अतिरिक्त रूप से चुकाने होंगे।
इस नीति का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि गेहूं की आपूर्ति केवल वास्तविक प्रसंस्करण और उपयोग के लिए हो, न कि ट्रेडिंग के लिए, ताकि गेहूं की कीमतों में स्थिरता लाई जा सके।