सरकार का लक्ष्य – 2030 तक दालों के आयात पर पूर्ण विराम, ‘स्वदेशी’ अभियान को बढ़ावा
नई दिल्ली, 14 अक्टूबर 2025 (ज़िया हक):
सरकार अब दालों पर लगने वाले आयात शुल्क (Import Duty) की समीक्षा करने जा रही है। वजह यह है कि कुछ दालों पर शून्य शुल्क (0%) होने के कारण आयात सस्ता पड़ता है, जिससे घरेलू बाजार में दाम गिरते हैं और किसान दाल की खेती से दूरी बनाने लगते हैं।
यह कदम प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के हाल ही में शुरू किए गए “स्वदेशी अभियान” और दाल आत्मनिर्भरता मिशन का हिस्सा है, जिसका लक्ष्य 2030 तक दालों के आयात को पूरी तरह समाप्त करना है।
एक अधिकारी के अनुसार,
“कृषि और वाणिज्य मंत्रालय अब मिलकर दालों के आयात शुल्क की समीक्षा करेंगे। हमें उपभोक्ता मूल्य स्थिर रखने और किसानों को प्रोत्साहन देने — दोनों के बीच संतुलन बनाना होगा।”
फिलहाल चना (Bengal Gram) और मसूर (Masoor) पर 10% आयात शुल्क लागू है, जो वित्त वर्ष 2026 तक जारी रहेगा। वहीं पीली मटर (Yellow Peas) पर शून्य शुल्क की अवधि 31 मार्च 2026 तक बढ़ा दी गई है।
विशेषज्ञों का कहना है कि सस्ते आयात ने स्थानीय कीमतों को नीचे धकेला है, जिससे किसान दाल की बुवाई बढ़ाने से हिचक रहे हैं। इस साल खरीफ 2025-26 में दालों की कुल बुवाई 12 मिलियन हेक्टेयर पर रही, जो पिछले वर्ष के 11.9 मिलियन हेक्टेयर के लगभग बराबर है। वहीं मूंग (Green Gram) का रकबा भी 3.4 मिलियन हेक्टेयर पर स्थिर बना हुआ है।
सरकार अब एक अर्थशास्त्रियों की समिति गठित कर रही है, जो नियमित रूप से उत्पादन, आपूर्ति और उपलब्धता की समीक्षा कर यह तय करेगी कि किस वस्तु पर कितना आयात शुल्क लगाया जाए।
हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि नीतिगत हस्तक्षेपों (जैसे बार-बार निर्यात पर रोक या शुल्क में बदलाव) से बाजार में अस्थिरता बढ़ती है। कृषि अर्थशास्त्री अशोक गुलाटी के अनुसार, भारत के निर्यात प्रतिबंध से वैश्विक खाद्य संकट बढ़ सकता है, जबकि घरेलू कीमतों पर इसका बहुत असर नहीं होता।
आईसीआरआईईआर (ICRIER) की 2023 की एक रिपोर्ट के मुताबिक, उपभोक्ता कीमतों को नियंत्रित रखने की सरकारी नीतियों के कारण किसानों की करीब ₹45,000 करोड़ की आय का नुकसान हुआ।
विशेषज्ञों का मानना है कि अगर भारत को दालों में आत्मनिर्भर बनना है, तो किसानों को उचित दाम और स्थिर नीतिगत वातावरण देना जरूरी होगा।