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भारत ने नॉन-बासमती चावल निर्यात पंजीकरण पर ₹8 प्रति टन शुल्क लगाया

भारत सरकार ने नॉन-बासमती चावल के निर्यात अनुबंधों के अनिवार्य पंजीकरण के बाद अब ₹8 प्रति टन का नाममात्र शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य भारतीय चावल को एक ब्रांड के रूप में वैश्विक बाजारों में स्थापित करना है। अभी तक कई किस्मों का चावल थोक में निर्यात होता है ........

Government 11:28 AM
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तीन प्रमुख उद्योग संघों ने फैसले का किया समर्थन, निर्यातकों को मिलेगी पहचान और पारदर्शिता

भारत सरकार ने नॉन-बासमती चावल के निर्यात अनुबंधों के अनिवार्य पंजीकरण के बाद अब ₹8 प्रति टन का नाममात्र शुल्क लगाने का निर्णय लिया है। इसका उद्देश्य भारतीय चावल को एक ब्रांड के रूप में वैश्विक बाजारों में स्थापित करना है। अभी तक कई किस्मों का चावल थोक में निर्यात होता है और विदेशी आयातक उसे पैक कर स्थानीय ब्रांड के रूप में बेच देते हैं, जिससे "भारतीय चावल" की पहचान कमजोर हो जाती है।

इस कदम का स्वागत करते हुए नॉन-बासमती चावल निर्यातकों के तीनों प्रमुख संगठन — द राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन (TREA), द राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन सीजी और इंडियन राइस एक्सपोर्टर्स फेडरेशन (IREF) — ने कहा है कि यह प्रणाली निर्यातकों और सरकार दोनों के लिए लाभकारी सिद्ध होगी।

डेटा संग्रह और पारदर्शिता
एपेडा (APEDA) लंबे समय से बासमती चावल के निर्यात अनुबंधों का पंजीकरण करता आ रहा है। हाल ही में बासमती पर पंजीकरण शुल्क ₹30 से बढ़ाकर ₹70 प्रति टन कर दिया गया था। अब नॉन-बासमती पर भी यह व्यवस्था लागू होने से निर्यात डेटा उपलब्ध होगा, जिससे यह पता लगाया जा सकेगा कि कौन-सा देश कितनी मात्रा में चावल खरीद रहा है।

टीआरईए अध्यक्ष बी.वी. कृष्णा राव ने कहा, “जब तक अनुबंधों का सत्यापन तेज़ी से होगा, यह प्रणाली निर्यातकों के लिए सहूलियत भरी रहेगी। चूंकि यह शुल्क नॉन-बासमती चावल के वैश्विक प्रचार-प्रसार के लिए इस्तेमाल किया जाएगा, इसलिए यह स्वागत योग्य कदम है।”

निर्यातकों के हित सुरक्षित होंगे
आईआरईएफ अध्यक्ष प्रेम गर्ग ने कहा कि यह शुल्क बोझ नहीं बल्कि "राइस ट्रेड डेवलपमेंट फंड" में योगदान है, जिसका उपयोग भारतीय चावल को वैश्विक स्तर पर बढ़ावा देने में किया जाएगा। उन्होंने बताया कि इस व्यवस्था से निर्यात मात्रा पर बेहतर निगरानी रखी जा सकेगी और निर्यात गंतव्यों का व्यापक डाटाबेस बनेगा। इससे न केवल पारदर्शिता बढ़ेगी बल्कि व्यापार की विश्वसनीयता भी मजबूत होगी।

गर्ग ने यह भी कहा कि किसी विवाद या भुगतान डिफॉल्ट की स्थिति में पंजीकरण रिकॉर्ड से निर्यातकों को सुरक्षा मिलेगी और संगठन एपेडा के साथ मिलकर उनकी समस्याओं का समाधान करेगा।

जागरूकता और निर्यातकों की सुविधा
एपेडा अब जागरूकता सेमिनार आयोजित करेगा ताकि निर्यातकों को नई प्रणाली की जानकारी दी जा सके और वे आसानी से पंजीकरण करा सकें।

द राइस एक्सपोर्टर्स एसोसिएशन सीजी के अध्यक्ष मुकेश जैन ने कहा कि हाल ही में 2,000 कंटेनरों को कुछ देशों में रोका गया था, जिसे एपेडा के हस्तक्षेप से हल किया गया। नई प्रणाली लागू होने से इस तरह की समस्याओं का समाधान और भी आसान हो जाएगा।

यह कदम भारतीय नॉन-बासमती चावल को वैश्विक बाजार में एक मज़बूत पहचान और प्रतिस्पर्धात्मक लाभ देने की दिशा में अहम माना जा रहा है।

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