सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र सरकार की उस नीति पर जवाब मांगा है, जिसके तहत पीली मटर का शुल्क-मुक्त आयात किया जा रहा है। किसान संगठन किसान महापंचायत की ओर से दाखिल जनहित याचिका में तर्क दिया गया है कि इस नीति से घरेलू किसानों को भारी नुकसान हो रहा है और दालों की कीमतें न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे आ गई हैं।
याचिकाकर्ता की ओर से वरिष्ठ वकील प्रशांत भूषण ने अदालत को बताया कि पीली मटर का आयात 3,500 रुपये प्रति क्विंटल की दर से हो रहा है, जबकि उड़द, तूर और चना जैसी घरेलू दालों का MSP करीब 8,500 रुपये प्रति क्विंटल है। उनका कहना था कि सस्ती आयातित दाल के कारण किसान अपनी फसल लागत से भी कम दाम पर बेचने को मजबूर हैं। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि कृषि लागत एवं मूल्य आयोग ने मार्च 2025 में पीली मटर पर प्रतिबंध लगाने और अन्य दालों पर आयात शुल्क बढ़ाने की सिफारिश की थी।
पीठ के अध्यक्ष जस्टिस सूर्यकांत ने सुनवाई के दौरान सवाल उठाया कि क्या भारत में दालों का पर्याप्त घरेलू उत्पादन है। उन्होंने कहा कि किसानों के पास भंडारण की सुविधा न होने के कारण उन्हें मजबूरी में कम दाम पर फसल बेचनी पड़ती है। भूषण ने जवाब में कहा कि लगातार बढ़ते आयात ने ऐसी स्थिति बना दी है कि किसान लागत के बराबर भी मूल्य नहीं पा रहे।
याचिका में यह भी दावा किया गया कि ऑस्ट्रेलिया और अन्य देशों में पीली मटर का इस्तेमाल मवेशियों के चारे के रूप में किया जाता है, जिससे स्वास्थ्य संबंधी जोखिम भी हो सकते हैं। अदालत ने फिलहाल कृषि लागत एवं मूल्य आयोग और नीति आयोग की सिफारिशों के आलोक में केंद्र को नोटिस जारी किया है और कहा है कि इस मामले की गहन जांच जरूरी है।