भारत में दालों की कीमतें लगातार दबाव में हैं। मंडियों में तूर, उड़द, मसूर और चना जैसी प्रमुख दालें पिछले साल के मुकाबले ही नहीं, बल्कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से भी नीचे बिक रही हैं। ऐसे हालात में सरकार अब दालों के आयात पर शुल्क लगाने पर विचार कर रही है, ताकि घरेलू बाजार स्थिर हो और किसानों को घाटे से राहत मिले।
आयातित दालों का असर
सस्ती दालों की आयातित आवक से घरेलू कीमतों में बड़ी गिरावट आई है। पिछले एक साल में प्रमुख दालों के भाव इस तरह गिरे:
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तूर: 38% कम
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चना: 25% कम
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मूंग: 18% कम
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उड़द: 15% कम
ट्रेडर्स का कहना है कि अगर यह स्थिति बनी रही तो किसान रबी सीजन में चना और मसूर जैसी दालों की बुवाई से पीछे हट सकते हैं।
सरकार और ट्रेडर्स की चिंता
कृषि मंत्री शिवराज सिंह चौहान ने हाल ही में चेतावनी दी थी कि ड्यूटी-फ्री पीली मटर (Yellow Peas) का आयात चने की कीमतों को बिगाड़ रहा है। पीली मटर स्नैक इंडस्ट्री में चने का सस्ता विकल्प बन चुकी है। मंत्री ने इस पर 50% शुल्क दोबारा लगाने की सिफारिश की है, जो दिसंबर 2023 से पहले लागू था।
ट्रेड बॉडीज़ ने भी सरकार से मांग की है कि पीली मटर और अन्य दालों पर शुल्क लगाया जाए, ताकि किसान हतोत्साहित न हों।
आयात और भंडारण की स्थिति
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2024-25 में रिकॉर्ड 7.34 मिलियन टन दालों का आयात हुआ।
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भारत अपनी सालाना खपत का 15-18% दालें आयात करता है।
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दिसंबर 2023 से अब तक 3.5 मिलियन टन पीली मटर का आयात हो चुका है।
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घरेलू उत्पादन मात्र 0.45 मिलियन टन, जबकि आयातकों के पास लगभग 1 मिलियन टन स्टॉक मौजूद है।
CACP की रिपोर्ट और सुझाव
कृषि लागत और मूल्य आयोग (CACP) ने अपनी रिपोर्ट “प्राइस पॉलिसी फॉर खरीफ क्रॉप्स, मार्केटिंग सीजन 2025-26” में सुझाव दिया है:
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पीली मटर के आयात पर रोक लगे।
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तूर, उड़द और मसूर पर आयात शुल्क बढ़ाया जाए।
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आयात नीति को MSP से जोड़ा जाए, ताकि किसानों को लाभकारी मूल्य मिल सके।
उत्पादन और महंगाई
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2024-25 में दाल उत्पादन: 25.23 मिलियन टन (पिछले साल से 4% ज्यादा)।
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लक्ष्य: 2025-26 में 27 मिलियन टन।
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अगस्त 2025 में दाल महंगाई -14.53% (नकारात्मक) रही, जबकि अगस्त 2024 में यह 113% तक पहुंच गई थी।
बफर स्टॉक
विशेषज्ञों की राय
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हर्षा राय, मयूर ग्लोबल कॉर्पोरेशन: “भारत को केवल उतनी ही दालें आयात करनी चाहिए, जिससे कीमतें स्थिर रहें लेकिन किसान बुवाई से हतोत्साहित न हों।”
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सुनील कुमार बालदेवा, एग्री फार्मर एंड ट्रेड एसोसिएशन: “सस्ते आयात से घरेलू कीमतें टूट रही हैं। अगर आयात शुल्क नहीं लगाया गया तो रबी सीजन की बुवाई पर असर पड़ेगा।”