देशभर में इस साल तुवर (अरहर) का उत्पादन रिकॉर्ड स्तर पर पहुंचा है। घरेलू और रंगूनी दोनों किस्मों की फसल भरपूर हुई है। सीजन की शुरुआत में ही दाल मिलों ने अपनी ज़रूरत का स्टॉक कर लिया था, जिससे सौजन ऑफ होते ही खरीदी की रफ्तार सुस्त पड़ गई है।
दिल्ली की दाल मिलों के मुकाबले अन्य राज्यों की मिलों में दाल के भाव सस्ते हैं, जिससे राजधानी के बाजारों में बिक्री प्रभावित हो रही है। हालांकि वर्तमान स्तर पर व्यापार में कोई बड़ा जोखिम नहीं दिख रहा है, लेकिन लंबी तेजी की संभावना भी कम है।
रंगून (म्यांमार) में फरवरी-मार्च में अच्छी फसल आई थी, और वहां के निर्यातकों ने समय रहते माल बेचकर अपनी पोजीशन हल्की कर ली। इसके चलते पिछले डेढ़ महीने से बाजार में निरंतर मंदी बनी हुई है, भले ही यह दाल की खपत का प्रमुख समय हो।
एक अनुमान के अनुसार, पिछले साल देश में तुवर का उत्पादन 34–35 लाख मीट्रिक टन था, जबकि इस बार यह बढ़कर 52–53 लाख मीट्रिक टन तक पहुंच सकता है। साथ ही खरीफ सीजन के लिए बिजाई भी लगभग पूरी हो चुकी है। सरकार द्वारा उन्नत बीज वितरण और दालों में आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने की योजनाओं के कारण आने वाली फसलें भी बेहतर रहने की संभावना है।
इन सब स्थितियों को देखते हुए तुवर में तेज़ी की उम्मीद पर सीमित नजरिया रखना उचित होगा।