एसबीआई की रिपोर्ट के अनुसार, भारतीय परिवारों में खर्च की प्राथमिकताएँ बदल रही हैं, जिसमें भोजन से गैर-भोजन सामग्रियों की ओर झुकाव देखा गया है। ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में दाल और अनाज की खपत में 5% से अधिक की गिरावट हुई है। पिछले 12 वर्षों में भोजन पर खर्च घटा है, जबकि गैर-भोजन खर्च, जैसे स्वच्छता उत्पादों और अन्य जरूरतों पर खर्च, बढ़ा है। जीएसटी दरों में कटौती से कपड़े और जूतों पर खर्च कम हुआ है। यह बदलाव आर्थिक विकास, सरकारी नीतियों और जीवनशैली में सुधार के चलते भारत के बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य को दर्शाता है।
भारतीय परिवारों के खर्च की प्राथमिकताएँ पिछले 12 वर्षों में काफी बदल गई हैं। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया (SBI) की रिपोर्ट के अनुसार, भोजन से गैर-भोजन सामग्रियों की ओर झुकाव बढ़ा है। यह बदलाव ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में देखा गया है, जो आर्थिक विकास, सरकारी नीतियों और जीवनशैली में बदलाव को दर्शाता है।
दाल और अनाज की खपत में गिरावट
रिपोर्ट में बताया गया कि ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में दाल और अनाज की खपत में 5% से अधिक की गिरावट आई है।
रिपोर्ट के अनुसार, "ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में 'दाल और अनाज' की खपत में 5% से अधिक की महत्वपूर्ण कमी आई है।"
खर्च की प्राथमिकताओं में बदलाव
पिछले 12 वर्षों में उपभोक्ताओं की प्राथमिकताएँ बदल रही हैं। भोजन पर खर्च का हिस्सा ग्रामीण क्षेत्रों में 2011-12 में 52.9% था, जो 2023-24 में घटकर 47.04% हो गया। वहीं, शहरी क्षेत्रों में यह 42.62% से घटकर 39.68% रह गया।
इसके विपरीत, गैर-भोजन सामग्रियों पर खर्च में वृद्धि हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में यह 47.1% से बढ़कर 52.96% और शहरी क्षेत्रों में 57.38% से बढ़कर 60.32% हो गया।
साफ-सफाई और जीवनशैली में सुधार
स्वच्छ भारत अभियान की सफलता और स्वच्छता को लेकर जागरूकता के चलते साबुन और अन्य स्वच्छता उत्पादों पर खर्च बढ़ा है।
इसके अलावा, जीएसटी दरों में कटौती के कारण कपड़े और जूतों पर खर्च में भी कमी आई है। टैक्स और सेस के हिस्से में भी गिरावट देखी गई है, जिससे परिवारों पर कर का बोझ कम हुआ है।
भारत के बदलते सामाजिक-आर्थिक परिदृश्य का संकेत
यह बदलाव भारत के बदलते सामाजिक और आर्थिक परिदृश्य को दर्शाता है। बढ़ती आय, बेहतर जीवन स्तर और सरकारी पहलों ने उपभोक्ताओं की प्राथमिकताओं को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
एसबीआई की रिपोर्ट बताती है कि भारत में उपभोक्ता व्यवहार में हो रहे ये परिवर्तन वैश्विक प्रवृत्तियों के अनुरूप हैं और देश की प्रगति का संकेत देते हैं।