चीन और कनाडा के बीच चल रहे टैरिफ वॉर ने भारत के लिए एक नया व्यापारिक अवसर खोल दिया है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) का अनुमान है कि भारत वर्ष 2024-25 में चीन को 5 लाख टन तक सरसों खल (Mustard DOC) निर्यात कर सकता है, जिसका कुल मूल्य करीब 1,000 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है।
SEA के अनुसार, वर्ष 2023-24 में भारत ने चीन को 49,591 टन सरसों खल का निर्यात किया था, जो 2024-25 में बढ़कर 60,759 टन हो गया। इस बढ़त का श्रेय अंतरराष्ट्रीय बाजार में भारतीय सरसों खल की प्रतिस्पर्धी कीमतों को जाता है। वर्तमान में, जहां वैश्विक बाजार में सरसों खल की कीमतें $335/टन तक पहुंच गई हैं, वहीं भारत में यह केवल $209/टन के आसपास उपलब्ध है, जो विदेशी आयातकों के लिए काफी आकर्षक है।
चीन, जो दुनिया में सरसों खल का एक प्रमुख उपभोक्ता है, अब तक कनाडा और यूरोपीय यूनियन से इसका आयात करता रहा है। लेकिन कनाडा से आयात पर 100% टैरिफ लगाए जाने के बाद चीन अब सस्ते विकल्पों की तलाश में है। इसी पृष्ठभूमि में भारत का सरसों खल एक व्यवहारिक विकल्प बनकर उभरा है।
हालांकि, कुछ चुनौतियां भी सामने हैं। SEA के कार्यकारी निदेशक बी वी मेहता के अनुसार, चीन ने सरसों खल के आयात पर 2011 से कुछ कड़े नियम और शर्तें लागू कर रखी हैं, जिनका पालन करना आसान नहीं है। फिलहाल भारत की सिर्फ पांच कंपनियां इन शर्तों को पूरा कर पा रही हैं, जिनमें से केवल दो ही चीन को सक्रिय रूप से निर्यात कर रही हैं।
SEA ने केंद्र सरकार से अनुरोध किया है कि वह चीन के साथ इस विषय पर वार्ता करे और इन शर्तों को आसान बनवाए, ताकि भारत इस अवसर का अधिकतम लाभ उठा सके। निर्यात में वृद्धि होने से न केवल विदेशी मुद्रा की आमद बढ़ेगी, बल्कि देश के किसानों को भी फायदा होगा क्योंकि सरसों की घरेलू कीमतों को मजबूत समर्थन मिलेगा।
विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह रणनीति सफल होती है, तो भारत न केवल चीन के लिए प्रमुख सप्लायर बन सकता है, बल्कि वैश्विक सरसों खल बाजार में अपनी साख भी मजबूत कर सकता है। यह कदम कृषि और निर्यात क्षेत्र के लिए एक नई उम्मीद की किरण साबित हो सकता है।