भारत सरकार ने विश्व व्यापार संगठन (WTO) को सूचित किया है कि वह गेहूं के निर्यात पर लगे अस्थायी प्रतिबंध को अभी हटाने का इरादा नहीं रखती है। यह प्रतिबंध मई 2022 से लागू है और इसका मुख्य उद्देश्य घरेलू बाजार में खाद्य सुरक्षा बनाए रखना है। सरकार ने यह निर्णय वैश्विक गेहूं कीमतों में अस्थिरता और पड़ोसी तथा संवेदनशील देशों की खाद्य आवश्यकताओं को ध्यान में रखते हुए लिया है।
सरकार का अनुमान है कि 2024-25 की रबी सीजन में देश में गेहूं का उत्पादन 2% बढ़कर रिकॉर्ड 115.4 मिलियन टन तक पहुंच सकता है। यह वृद्धि मुख्य रूप से बुवाई क्षेत्र में विस्तार के कारण संभव हुई है। बावजूद इसके, सरकार खुदरा खाद्य मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने के लिए निर्यात में ढील देने से बच रही है, खासकर आगामी त्योहारी सीजन और राज्य विधानसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए।
भारत ने WTO को बताया कि उसने गेहूं निर्यात की नीति को ‘फ्री’ से बदलकर ‘प्रोhibited’ कर दिया है, जो GATT 1994 के अनुच्छेद XI:2(a) और कृषि समझौते के अनुच्छेद 12.1 के अनुरूप है। हालांकि, सरकार ने मानवीय आधार या द्विपक्षीय राजनयिक अनुरोधों के माध्यम से सीमित निर्यात की अनुमति देने की संभावना खुली रखी है।
मई 2022 में यह प्रतिबंध तब लगाया गया था जब रूस-यूक्रेन युद्ध के कारण वैश्विक आपूर्ति बाधित हुई थी, और गेहूं की कीमतों में तेज उछाल देखा गया था। तब से भारत के निर्यात में भारी गिरावट आई है—FY23 में जहाँ भारत ने 4.7 मिलियन टन गेहूं निर्यात किया था, वहीं FY25 (अप्रैल-फरवरी) में यह घटकर सिर्फ 2,749 टन रह गया।
भारत भले ही गेहूं उत्पादन में अग्रणी है, लेकिन वह एक प्रमुख निर्यातक नहीं है। इससे पहले भारत के प्रमुख खरीदारों में बांग्लादेश, इंडोनेशिया, UAE, श्रीलंका, केन्या, जिबूती और सोमालिया जैसे देश शामिल थे। साथ ही, नेपाल, भूटान और खाड़ी देशों जैसे ओमान और कतर को प्रोसेस्ड गेहूं उत्पादों का निर्यात भी होता था।
सरकार ने स्पष्ट किया है कि प्रतिबंध तब तक जारी रहेगा जब तक इसकी आवश्यकता बनी रहेगी। वर्तमान में खाद्य मूल्य स्थिरता को प्राथमिकता देते हुए भारत घरेलू आवश्यकताओं को पहले स्थान पर रख रहा है।