2025-26 में लाल मसूर की वैश्विक बाजार स्थिति पूरी तरह से ऑस्ट्रेलिया और कनाडा की फसल पर निर्भर करती दिख रही है। यदि दोनों देशों में औसत पैदावार होती है, तो वैश्विक मांग और आपूर्ति में संतुलन बना रहेगा, लेकिन मौसम की मार ने अनिश्चितता बढ़ा दी है।
ऑस्ट्रेलिया की स्थिति:
पिछले साल सूखा और पाला पड़ने से ऑस्ट्रेलिया की मसूर फसल को भारी नुकसान हुआ था। हालांकि इस साल किसान उतने ही क्षेत्र में बुवाई कर रहे हैं जितना पिछले साल किया गया था। अगर इस बार औसत पैदावार होती है, तो उत्पादन 1.16 मिलियन टन से बढ़कर 1.69 मिलियन टन तक पहुंच सकता है।
ABARES का अनुमान है कि यह उत्पादन 10 साल के औसत से 71% ज्यादा रहेगा। हालांकि, विक्टोरिया और साउथ ऑस्ट्रेलिया में अब भी सूखे की स्थिति चिंता का विषय है। जुलाई-अगस्त का मौसम बहुत निर्णायक रहेगा।
कनाडा की स्थिति:
कनाडा का लाल मसूर उत्पादन 1.73 मिलियन टन से घटकर 1.54 मिलियन टन रहने का अनुमान है। हालांकि यह फसल छोटी नहीं मानी जा रही, लेकिन बहुत बड़ी भी नहीं है। वहां भी मई के अंत तक नमी की स्थिति ठीक थी, लेकिन अब सूखापन बढ़ रहा है।
वहां बुवाई का क्षेत्र 2.6 मिलियन एकड़ है (1% की वृद्धि), लेकिन असली फर्क मौसम ही डालेगा।
अन्य देशों की स्थिति:
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रूस और कजाकिस्तान: इन दोनों देशों से कुल 800,000 टन का उत्पादन अनुमानित है, जिसमें आधी मात्रा लाल मसूर की होगी।
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तुर्की: शुरुआत में अनुमान 400,000 टन का था, लेकिन तुर्की सरकार का नया आंकड़ा सिर्फ 340,000 टन है (पिछले वर्ष से 16% कम)।
भारतीय बाजार का प्रभाव:
भारत में लाल मसूर के भाव $700–$800/टन के दायरे में स्थिर बने हुए हैं, MSP नीति के कारण।
हालांकि इस बार अप्रैल-मई में कीमतों में अपेक्षित तेजी नहीं आई क्योंकि भारत सरकार ने 10% आयात शुल्क लगा दिया।
SGR Agri के बिनोद अग्रवाल का मानना है कि भारत की असली फसल 1–1.2 मिलियन टन ही रही, जबकि सरकारी अनुमान 1.8 मिलियन टन का था। फिलहाल देश में करीब 10 लाख टन स्टॉक मौजूद है, जिससे 4–5 महीने तक की मांग पूरी हो सकती है।
ट्रेडर व्यू:
अगर ऑस्ट्रेलिया में सूखा जारी रहा, तो बाजार में 800,000 टन की कमी आ सकती है। वहीं तुर्की की डिमांड को देखते हुए रूस और कजाकिस्तान की आपूर्ति अब तेजी से बढ़ रही है।