अंतरराष्ट्रीय दाल बाजारों में इस सप्ताह हल्की नरमी देखने को मिली है, जिसका मुख्य कारण उत्तर अमेरिका में बढ़ती उत्पादन की संभावनाएं और प्रमुख निर्यातकों की रणनीतियों में बदलाव है। मसूर, चना और मटर जैसी प्रमुख दालों के वैश्विक बाजारों पर दबाव बना हुआ है, जिससे आने वाले समय में इनके दामों में स्थिरता या गिरावट देखने को मिल सकती है।
विशेषज्ञों के अनुसार, मसूर बाजारों में सप्ताह के अंत तक हल्की कमजोरी रही। उत्तर अमेरिका में बढ़ती फसल की आशंका से यह दबाव बना है। हालांकि कनाडा में किसान मसूर की खेती का रकबा थोड़ा कम करने की योजना बना रहे हैं, लेकिन मटर से मसूर की ओर शिफ्ट होने के कारण कुल रकबा बढ़ सकता है। दूसरी ओर, अमेरिका में किसानों द्वारा 1.22 मिलियन एकड़ ग्रीन मसूर बोने की योजना है, जो अब तक का रिकॉर्ड स्तर होगा और 2017 के 1.104 मिलियन एकड़ के पिछले रिकॉर्ड को पार कर जाएगा। इससे मसूर का स्टॉक बढ़ने की पूरी संभावना है, जिससे बाजार में मंदी का असर बना रहेगा।
चना बाजार भी इस सप्ताह कुछ नरम रहा। खासकर भारतीय उपमहाद्वीप से छोटे आकार के चने की मांग में कमी के चलते कीमतों में कमजोरी देखी गई। कनाडा और अमेरिका दोनों जगह इस बार संयुक्त रूप से चने की खेती का रकबा बढ़ने की उम्मीद है। अमेरिका में चने का रकबा 504,600 एकड़ से बढ़कर 563,000 एकड़ तक पहुँचने का अनुमान है। इसमें बड़े आकार के चने की बुवाई में 20% की वृद्धि होकर 364,000 एकड़ से 436,000 एकड़ तक पहुँच सकती है, जबकि छोटे आकार के चने का रकबा घटकर 138,000 एकड़ से 125,000 एकड़ तक रह सकता है।
फील्ड पी (मटर) बाजार में पिछले सप्ताह स्थिरता के संकेत देखे गए। यह स्थिरता खासतौर पर तब आई जब कनाडाई उत्पादों के लिए चीनी बाजार के बंद होने से पहले बड़ी गिरावट देखी गई थी। अब स्थिति कुछ संभलती नजर आ रही है। कनाडा में मटर की बुवाई की शुरुआती उम्मीदों के मुकाबले गिरावट दर्ज की जा सकती है और रकबा घटकर 2.88 मिलियन एकड़ तक आ सकता है। अमेरिका में भी किसानों द्वारा मटर की बुवाई में कटौती की संभावना है, जिससे रकबा 995,800 एकड़ से घटकर 913,000 एकड़ तक पहुंच सकता है।
कुल मिलाकर, दालों के अंतरराष्ट्रीय बाजार में उत्पादन और निर्यात को लेकर कई तरह की गतिविधियाँ चल रही हैं, जो बाजार को संतुलित करने की दिशा में हैं। हालांकि, उत्तर अमेरिका में बढ़ता उत्पादन निकट भविष्य में कीमतों पर दबाव बना सकता है। व्यापारी वर्ग और संबंधित निर्यातक देशों के लिए यह समय रणनीतिक दृष्टिकोण से अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।