वैश्विक स्तर पर दालों की कीमतों में बड़ी गिरावट देखने को मिल रही है। कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, रूस और अफ्रीकी देशों में अच्छी पैदावार के चलते सभी देश बाज़ार हिस्सेदारी पाने की होड़ में निर्यात दरें लगातार नीचे ला रहे हैं। बीते एक महीने में दालों की कीमतें 5% से 20% तक गिर चुकी हैं। इसका सीधा असर भारतीय किसानों और घरेलू व्यापार पर पड़ रहा है क्योंकि इस समय भारत में भी उड़द, तूर, मसूर और मोंठ जैसी फसलें कटाई या बुवाई के चरण में हैं, जबकि कई इलाकों में अगस्त-सितंबर की भारी बारिश से फसलें प्रभावित हुई हैं।
ग्लोबल पल्स कॉन्फेडरेशन (GPC) और एगमार्कनेट के आंकड़ों के अनुसार, वर्तमान में आयातित दालों के दाम ज्यादातर न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से नीचे हैं। उदाहरण के लिए तूर का MSP ₹8,000 प्रति क्विंटल है, जबकि घरेलू कीमतें ₹6,033 और आयात कीमतें ₹4,473–4,615 तक हैं। इसी तरह उड़द का MSP ₹7,800 है, जबकि घरेलू दरें ₹6,207 और आयात दरें ₹7,724–7,990 हैं। मसूर का MSP ₹6,700 है, किंतु घरेलू दाम ₹7,061 और आयात मूल्य केवल ₹4,792 तक रह गया है। चना, जिसका MSP ₹5,650 है, घरेलू मंडियों में ₹5,735 पर मिल रहा है, जबकि आयात दर ₹4,837 है।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कनाडा, ऑस्ट्रेलिया और रूस से बड़ी मात्रा में दालों का निर्यात होने वाला है। कनाडा में मटर और मसूर की पैदावार रिकॉर्ड स्तर पर है, वहीं ऑस्ट्रेलिया की मसूर की फसल 34% बढ़कर 1.7 मिलियन टन रहने का अनुमान है। इसके अलावा तंज़ानिया, मलावी, मोज़ाम्बिक, म्यांमार और ब्राज़ील से भी भारी सप्लाई की उम्मीद है।
विशेषज्ञों का मानना है कि यह स्थिति भारतीय किसानों और व्यापारियों के लिए चुनौतीपूर्ण है क्योंकि घरेलू कीमतें पहले ही MSP से नीचे हैं और ड्यूटी-फ्री आयात (तूर, उड़द और पीली मटर पर 31 मार्च 2026 तक) घरेलू बाजार को और दबाव में डाल रहे हैं। मसूर और चना पर भले ही 10% कस्टम ड्यूटी लगी हुई है, लेकिन वैश्विक कीमतों में तेज गिरावट ने घरेलू रेट्स पर भी असर डालना शुरू कर दिया है।
व्यापारिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो आने वाले महीनों में भारतीय दाल व्यापारियों को आयात और घरेलू कीमतों के बीच अंतर को ध्यान में रखकर रणनीति बनानी होगी। विशेषकर पीली मटर, चना और मसूर जैसे उत्पादों में विदेशी बाजार से कम कीमत पर माल उपलब्ध होने से भारतीय खरीददारों का झुकाव आयात की ओर रहेगा। वहीं, किसानों के लिए MSP पर बिक्री सुनिश्चित करना सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती साबित हो सकती है।