देशभर के किसानों के लिए एक बड़ी और राहत भरी खबर सामने आई है। इंटरनेशनल क्रॉप रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सेमी-एरिड ट्रॉपिक्स (ICRISAT) ने अरहर (तुअर) की एक नई प्रजाति ICPL 12138 विकसित की है, जो भीषण गर्मी में भी 45°C तक का तापमान सहन करने में सक्षम है। यह शोध बदलते जलवायु परिदृश्य के मद्देनज़र किया गया है, जहां परंपरागत किस्में उच्च तापमान में उपज नहीं दे पा रही थीं और किसानों को भारी नुकसान झेलना पड़ता था।
क्यों खास है ICPL 12138?
भारत में अरहर दाल प्रमुख दालों में से एक है और इसकी खेती मुख्यतः महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, कर्नाटक, तेलंगाना, आंध्र प्रदेश जैसे राज्यों में होती है, जहां गर्मी का प्रकोप काफी अधिक होता है। ऐसे में यह नई किस्म किसानों के लिए वरदान साबित हो सकती है क्योंकि:
👉 यह 45°C तक की गर्मी को बर्दाश्त कर सकती है, जबकि पुरानी किस्में 35–38°C तक ही सहन कर पाती थीं।
👉 इसकी फसल की अवधि कम है, यानी कम समय में तैयार हो जाती है, जिससे किसान जल्दी अगली फसल की तैयारी कर सकते हैं।
👉 यह किस्म कीट और बीमारियों के प्रति अधिक सहनशील है, जिससे दवाओं और रसायनों पर खर्च कम होता है।
👉 उच्च तापमान में भी अच्छी उपज देती है, जिससे उत्पादन की स्थिरता बनी रहती है।
फील्ड ट्रायल में शानदार प्रदर्शन
तेलंगाना और महाराष्ट्र के कई क्षेत्रों में इस किस्म का परीक्षण किया गया, जिसमें इसने अत्यधिक गर्मी में भी पारंपरिक किस्मों के मुकाबले बेहतर प्रदर्शन किया। फसल की लंबाई, दाने का आकार, पौधों की जीवन क्षमता और उत्पादन स्तर – हर पैमाने पर ICPL 12138 ने वैज्ञानिकों की उम्मीदों को पार किया।
यह किस्म विशेषकर उन क्षेत्रों के लिए फायदेमंद होगी जहां तापमान लगातार बढ़ रहा है और पारंपरिक किस्में दम तोड़ रही हैं। उदाहरण के लिए विदर्भ और मराठवाड़ा जैसे क्षेत्रों में, जहां अकाल और उच्च तापमान आम हो गए हैं, यह किस्म एक स्थायी समाधान के रूप में देखी जा रही है।
देश की दाल सुरक्षा नीति में योगदान
भारत दुनिया का सबसे बड़ा दाल उपभोक्ता है लेकिन हर साल लाखों टन अरहर दाल का आयात भी करता है, खासकर अफ्रीकी देशों से। इस नई किस्म के जरिये घरेलू उत्पादन बढ़ाकर देश की दाल आत्मनिर्भरता को बढ़ावा दिया जा सकता है। यदि यह किस्म बड़े स्तर पर किसानों द्वारा अपनाई जाती है, तो न केवल आयात पर निर्भरता घटेगी बल्कि किसानों की आय में भी बड़ा सुधार हो सकता है।
वैज्ञानिकों और नीति-निर्माताओं की सराहना
ICRISAT के वैज्ञानिकों ने यह किस्म विकसित करने में वर्षों तक फील्ड रिसर्च, जर्मप्लाज़्म इकट्ठा करने और क्लाइमेट रेसिलियंट ब्रीडिंग तकनीक का उपयोग किया। कृषि मंत्रालय और राज्य सरकारें इस किस्म को जल्द ही बीज वितरण प्रणाली के माध्यम से किसानों तक पहुंचाने की योजना बना रही हैं।
किसानों के लिए एक नई शुरुआत
आज जब खेती जलवायु परिवर्तन के कारण अत्यधिक असुरक्षित होती जा रही है, यह किस्म एक स्थायी समाधान की दिशा में बड़ा कदम है। गर्मी और सूखे से परेशान किसानों को इससे एक नई आशा मिलेगी। इसके साथ ही यह नवाचार यह भी साबित करता है कि वैज्ञानिक शोध और कृषि तकनीक अगर सही दिशा में काम करें, तो भारतीय कृषि का भविष्य उज्ज्वल हो सकता है।