देश की प्रमुख अनाज मंडियों में इस समय गेहूं, बारीक चावल और मक्की तीनों ही प्रमुख फसलें अलग-अलग दिशा में कारोबार कर रही हैं। जहां गेहूं की भारी सप्लाई और सुस्त मांग से बाजार में ठहराव है, वहीं चावल में निर्यातकों की सक्रियता से तेजी लौट आई है। मक्की में शुरुआत में आई हल्की तेजी अब कमजोर पड़ रही है क्योंकि मंडियों में आवक बढ़ने लगी है और भाव नीचे की ओर झुकाव दिखा रहे हैं।
उत्तर भारत की मंडियों में गेहूं की आवक इन दिनों रिकॉर्ड स्तर पर बनी हुई है। सरकार द्वारा अब तक लगभग 300 लाख मीट्रिक टन गेहूं की खरीद की जा चुकी है, जो पिछले वर्ष की तुलना में 14% अधिक है। इसके बावजूद व्यापारिक गतिविधियाँ धीमी हैं क्योंकि मैदा मिलों की मांग लगभग ठंडी हो चुकी है। बीते सप्ताह में भाव में ₹20–₹25 प्रति क्विंटल की हल्की तेजी जरूर दिखी थी, लेकिन अब मिल क्वालिटी गेहूं ₹2750–₹2760 प्रति क्विंटल पर स्थिर हो गया है। व्यापारी बाजार को लेकर सतर्क हैं और बड़ी लिवाली से बच रहे हैं।
इसके उलट, बारीक चावल के बाजार में स्थिति तेजी की ओर है। पाकिस्तान के साथ समुद्री मार्गों में सुधार और शिपमेंट शुरू होने की खबरों के बीच निर्यातकों और स्टॉकिस्टों ने आक्रामक लिवाली शुरू कर दी है। इससे बीते सप्ताह चावल के भावों में ₹200–₹250 प्रति क्विंटल की उछाल देखी गई। 1509 धान से निर्मित सेला चावल, जिसकी लागत ₹6500–₹6600 प्रति क्विंटल है, वह अभी भी बाजार में ₹6350–₹6400 में बिक रहा है, जिससे यह स्पष्ट है कि आगे भी भावों में बढ़त की गुंजाइश बनी हुई है। स्टॉक की कमी और निर्यात की मांग ने बाजार को मजबूती दी है।
मक्की की स्थिति थोड़ी उलझी हुई है। पहले जहां मध्य प्रदेश और बिहार में मक्की के भाव ₹2150–₹2200 प्रति क्विंटल तक पहुंच गए थे, वहीं अब ये घटकर ₹2050–₹2100 पर आ गए हैं। हरियाणा और पंजाब में यह ₹2380–₹2410 और राजस्थान में ₹2430 प्रति क्विंटल तक बोली जा रही है, लेकिन बढ़ती आवक और मंडियों में रुकता स्टॉक अब दबाव बनाने लगा है। खपत आधारित कंपनियों में सप्लाई लगातार बनी हुई है, जिससे मक्की में अब किसी भी तेजी को बनाए रखना कठिन हो गया है।
कुल मिलाकर, जहां गेहूं और मक्की में मांग की कमजोरी और बढ़ी हुई सप्लाई बाजार को दबाव में रख रही है, वहीं बारीक चावल में निर्यातकों की सक्रियता और सीमित स्टॉक भावों को सहारा दे रहे हैं। आने वाले सप्ताहों में बाजार की दिशा काफी हद तक अंतरराष्ट्रीय संकेतों, सरकारी खरीद की गति और मानसून की स्थिति पर निर्भर करेगी।