चना की हालिया कीमतों में जो नरमी देखी गई है, वह मुख्य रूप से पिछले दिनों आई तेजी के बाद स्टॉकिस्टों की मुनाफावसूली का असर है। कई प्रमुख मंडियों में चना के भाव कुछ हद तक कमजोर हुए हैं। हालांकि व्यापारी वर्ग इसे गहरी गिरावट नहीं मान रहा, क्योंकि बाजार में अभी भी कई ऐसे फैक्टर्स हैं जो चना को सपोर्ट दे सकते हैं।
वर्तमान में घटे हुए दामों पर बिकवाली कमजोर बनी हुई है, जिससे यह संकेत मिलते हैं कि व्यापारियों को आगे भाव सुधरने की उम्मीद है। मंडियों में चना की आवक धीरे-धीरे घट रही है, खासकर उत्पादन वाले राज्यों में, जबकि स्टॉकिस्टों के पास फिलहाल पर्याप्त पुराना माल मौजूद है। लेकिन यह स्टॉक भी धीरे-धीरे खपत में आ रहा है, खासकर जैसे-जैसे मानसून का असर बाजारों पर बढ़ेगा।
मानसूनी मौसम की शुरुआत के साथ-साथ बेसन की खपत में तेजी आना तय माना जा रहा है, जो सीधे तौर पर चना की डिमांड को बढ़ाएगा। बाजार जानकारों का मानना है कि जैसे ही दाल मिलें सक्रिय होंगी, मांग का नया दौर शुरू होगा।
एक और अहम पहलू है कि केंद्रीय भंडार में चना का स्टॉक सीमित है और चालू रबी सीजन में कुल उत्पादन का अनुमान भी अपेक्षाकृत कम लगाया जा रहा है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि चना के दाम में और गिरावट की संभावना बेहद सीमित है।
आज के रेट्स पर नजर डालें तो कुछ मंडियों में मामूली गिरावट जरूर दर्ज की गई—जैसे कि कानपुर में ₹75 प्रति क्विंटल तक की नरमी और महाराष्ट्र की कुछ लाइनों में ₹50 तक की कमजोरी। लेकिन दूसरी ओर, कुछ केंद्रों जैसे सोलापुर में मिल क्वालिटी चना ₹50 मजबूत होकर बंद हुआ। यह दर्शाता है कि बाजार अभी संतुलन की स्थिति में है और मामूली उतार-चढ़ाव के साथ स्थिरता की ओर बढ़ रहा है।
संभावना है कि आने वाले हफ्तों में जब मानसूनी खपत बढ़ेगी और दाल मिलों की खरीद शुरू होगी, तो चना के भाव एक बार फिर संजीवनी पा सकते हैं। मंदी की जगह स्थिरता और संभावित तेजी की उम्मीद की जा सकती है।