मई महीने में भरतपुर की सरसों कीमतों में अब तक ₹380 प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी दर्ज की गई है। इस तेजी का मुख्य कारण सीमित आपूर्ति और स्टॉकिस्टों व प्रोसेसर्स की ओर से लगातार मजबूत मांग रही है। राजस्थान में इस वर्ष सरसों की उपलब्धता अपेक्षाकृत कम है, वहीं सरसों तेल की मजबूती और खल की निर्यात मांग ने भी बाजार को समर्थन दिया है। विश्लेषकों ने ₹6000 के स्तर के ऊपर स्थिरता मिलने पर आगे तेजी की संभावना जताई थी, जो पूरी तरह सटीक साबित हुई। वर्तमान में भरतपुर सरसों ₹6275 प्रति क्विंटल के नजदीक पहुंच चुकी है, जो इसका अगला प्रमुख रेजिस्टेंस स्तर माना जा रहा है। ऐसे में कुछ सीमित करेक्शन की संभावना बनी हुई है, हालांकि व्यापक गिरावट की आशंका फिलहाल नहीं है। यदि सरसों इस स्तर के ऊपर स्थिरता बनाए रखती है, तो दीर्घकालिक दृष्टिकोण से कीमतों में क्रमशः ₹6515 और ₹6750 तक की वृद्धि की संभावना है। आमतौर पर दिवाली तक सरसों अपने उच्चतम स्तर पर पहुंचती है, और ऐतिहासिक ट्रेंड भी इसी ओर संकेत कर रहे हैं।
वहीं दूसरी ओर, सोया तेल के बाजार में फिलहाल स्थिरता बनी हुई है। सुस्त डिमांड के चलते सीबीओटी पर आई मजबूती का घरेलू कीमतों पर कोई खास असर नहीं पड़ा है। पोर्ट पर स्टॉक की स्थिति सुधरने से आपूर्ति पर्याप्त बनी हुई है। बीते 2-3 दिनों में लूज सोया तेल की कीमतों में ₹1-2 प्रति लीटर की हल्की वृद्धि के बाद अब भाव स्थिर हैं। ₹1200 का स्तर अब एक मजबूत सपोर्ट के रूप में काम कर रहा है, जिससे दीर्घकालिक निवेशकों के लिए जोखिम सीमित हो गया है। इस बीच अंतरराष्ट्रीय मोर्चे पर अर्जेंटीना ने जून से अपने सोया तेल के निर्यात कर (एक्सपोर्ट टैक्स) को 24.5% से बढ़ाकर 31% करने की घोषणा की है। गौरतलब है कि इसी वर्ष जनवरी में अर्जेंटीना सरकार ने इस टैक्स में कटौती की थी।
अरंडी तेल और मील बाजार में चिंता की स्थिति बन रही है। सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (SEA) के अनुसार, 2024-25 के सीजन में अरंडी का घरेलू उत्पादन घटकर लगभग 15.60 लाख टन रहने का अनुमान है, जो पिछले सीजन के 19.60 लाख टन के मुकाबले करीब 4 लाख टन कम है। उत्पादक क्षेत्र में गिरावट और प्रतिकूल मौसम के कारण औसत उपज भी प्रभावित हुई है। भारत भले ही अभी भी विश्व का सबसे बड़ा अरंडी उत्पादक और अरंडी तेल व मील का प्रमुख निर्यातक बना रहेगा, लेकिन निर्यात योग्य स्टॉक में कमी के चलते कुल शिपमेंट पर असर पड़ सकता है। वर्तमान में भारत वैश्विक अरंडी तेल मांग का लगभग 90% हिस्सा अकेले पूरा करता है, और इस गिरावट का असर अंतरराष्ट्रीय बाजारों पर भी देखने को मिल सकता है।