वर्ष 2025-26 में भारत में गेहूं का रिकॉर्ड उत्पादन अनुमानित है—USDA के अनुसार 1170 लाख टन और भारत सरकार के अनुसार 1154.30 लाख टन। इसके बावजूद देश में गेहूं की सरकारी खरीद लगातार चौथे वर्ष अपने निर्धारित लक्ष्य से पीछे रह गई है। इस वर्ष 333 लाख टन के संशोधित लक्ष्य के विरुद्ध अब तक मात्र 296 लाख टन की खरीद संभव हो सकी है। वर्ष 2022 से लगातार सरकारी खरीद लक्ष्य से कम रह रही है, जिससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि किसानों की प्राथमिकता और गेहूं व्यापार का पारंपरिक ढांचा तेजी से बदल रहा है।
पंजाब, हरियाणा और बिहार जैसे प्रमुख राज्यों में खरीद प्रक्रिया लगभग समाप्त हो चुकी है, जबकि मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में सरकारी क्रय केंद्रों पर सुस्ती देखी जा रही है। इसका मुख्य कारण है—निजी खरीदारों की बढ़ती सक्रियता। इस वर्ष व्यापारियों, फ्लोर मिलर्स और स्टॉकिस्टों ने किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) से अधिक दामों पर सीधी खरीद की, जिससे किसानों को बेहतर आमदनी मिली और सरकारी एजेंसियां पीछे रह गईं।
राजस्थान जैसे राज्यों में हालांकि रिकॉर्ड स्तर पर सरकारी खरीद दर्ज हुई—18 मई तक 17.22 लाख मीट्रिक टन, जो पिछले वर्ष से लगभग दोगुनी है—लेकिन एफसीआई गोदाम पहले ही फुल हो चुके हैं, और बढ़ती आवक को देखते हुए अस्थायी भंडारण की व्यवस्था करनी पड़ी है। सिरसा (हरियाणा) में भी 8.5 लाख मीट्रिक टन से अधिक की खरीद के साथ उल्लेखनीय प्रदर्शन हुआ है।
गौर करने वाली बात यह है कि प्राइवेट सेक्टर द्वारा भारी मात्रा में गेहूं खरीद लिए जाने से मिलर्स की सप्लाई लाइन भर गई है और मंडियों में सरकारी खरीद की भूमिका सिमटने लगी है। हालांकि राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा के लिए सरकारी पूल में पर्याप्त भंडार उपलब्ध है, लेकिन सरकार फिलहाल खुले बाजार बिक्री योजना (OMSS) के तहत गेहूं की बिक्री में जल्दबाजी नहीं दिखाएगी। यदि बाजार में कीमतें लगातार बढ़ती रहीं तो सरकार स्टॉक लिमिट जैसे नियंत्रण उपायों पर विचार कर सकती है।
कुल मिलाकर, इस सीजन में गेहूं व्यापार का नया चेहरा उभर कर सामने आया है, जिसमें किसान बाजार-आधारित दामों की ओर झुकाव दिखा रहे हैं और निजी व्यापारियों की भूमिका निर्णायक होती जा रही है। आने वाले समय में नीति-निर्माताओं को इन बदलावों के अनुरूप सरकारी खरीद प्रणाली में रणनीतिक बदलाव करने की आवश्यकता होगी।