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चना बाजार दबाव में, स्टॉकिस्ट चिंतित – पीली मटर के आयात से कीमतों पर असर

देश में दलहनों की पैदावार में वृद्धि और ग्रीष्मकालीन फसलों की तेज आवक के कारण चना सहित अधिकांश दलहनों के बाजार में कमजोरी देखी जा रही है। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार, चना की कीमतों में तेजी की संभावनाएँ सीमित हो गई हैं। इसके पीछे मुख्य कारण घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी, पीली मटर का

Business 05 May
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देश में दलहनों की पैदावार में वृद्धि और ग्रीष्मकालीन फसलों की तेज आवक के कारण चना सहित अधिकांश दलहनों के बाजार में कमजोरी देखी जा रही है। व्यापारिक सूत्रों के अनुसार, चना की कीमतों में तेजी की संभावनाएँ सीमित हो गई हैं। इसके पीछे मुख्य कारण घरेलू उत्पादन में बढ़ोतरी, पीली मटर का बिना शुल्क आयात, और वैश्विक आपूर्ति में बढ़ोतरी है। इन हालातों में स्टॉकिस्टों को उनके माल पर गोदाम किराया और ब्याज जैसी लागतों के बढ़ने की चिंता सता रही है।

देश के विभिन्न बंदरगाहों और मंडियों में चना की कीमतें समर्थन मूल्य से नीचे कारोबार कर रही हैं। मुंबई बंदरगाह पर तंजानिया का चना ₹5600, सुडान का ₹6400, ऑस्ट्रेलिया का ₹5775, और मुंद्रा बंदरगाह पर ₹5675 प्रति क्विंटल रहा। वहीं, दिल्ली में राजस्थान लाइन का चना ₹5750-5775, मध्य प्रदेश लाइन का ₹5650-5675 और महाराष्ट्र की लोकल मंडियों में ₹5500-6000 तक कारोबार हुआ। इंदौर में काबुली चना (40-44 काउंट) ₹11,550, 42-44 काउंट ₹11,300 और 44-46 काउंट ₹11,000 पर बिका। गुजरात की मंडियों में सामान्य चना ₹5000-5400 तथा बढ़िया माल ₹6000-6100 रहा, जबकि राजस्थान की मंडियों में यह ₹4800-5200 तक सीमित रहा।

ऑस्ट्रेलिया के सरकारी आंकड़ों के अनुसार, मार्च 2025 में चना का निर्यात 75% घटकर मात्र 73,083 टन रह गया, जबकि फरवरी में यह 2.94 लाख टन था। भारत ने सबसे अधिक 34,110 टन चना आयात किया, इसके बाद पाकिस्तान (30,750 टन) और संयुक्त अरब अमीरात (4217 टन) रहे। देश के विभिन्न मंडियों जैसे कर्नाटक, झांसी, ललितपुर, कर्नूल, ओंगोल और अन्य क्षेत्रों में चना की आवक सक्रिय रही, किंतु कीमतें अभी भी दबाव में हैं।

चना व्यापारियों और किसानों के बीच चिंता का एक मुख्य कारण पीली मटर का बढ़ता आयात है। दिसंबर 2023 से कर-मुक्त पीली मटर का आयात चालू है, जिसकी अवधि 31 मई 2025 तक बढ़ाई गई है। इसकी वजह से पीली मटर, जो चने का विकल्प बनकर प्रयोग में आ रही है, बाजार में चना की मांग को प्रभावित कर रही है। किसान संगठनों और स्टॉकिस्टों का मानना है कि अब पीली मटर पर आयात शुल्क फिर से लगाया जाना चाहिए, ताकि चना को समर्थन मिल सके और कीमतें स्थिर रहें।

दिसंबर 2023 से मार्च 2025 के बीच भारत ने कुल 32.13 लाख टन पीली मटर आयात की, जिसमें से अकेले 2024-25 में 20.44 लाख टन आयात हुआ – यह पिछले वर्ष के मुकाबले लगभग दोगुना है। वर्तमान में कनाडा मई-जून के लिए $440 प्रति टन और रूस $400 प्रति टन के हिसाब से मटर ऑफर कर रहे हैं। कर-मुक्त नीति के चलते देश में मटर की आयात लागत ₹3400-3550 प्रति क्विंटल के आसपास बैठ रही है, जबकि चना का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) ₹5650 प्रति क्विंटल निर्धारित है। फिर भी विभिन्न मंडियों में चना ₹5000-5700 के बीच ही बिक रहा है, जो MSP से नीचे है।

वहीं, आयातित मटर की कीमतों में भी पिछले सप्ताह वृद्धि दर्ज की गई। रुपए की मजबूती से आयात महंगा हुआ है, जिससे मुंबई बंदरगाह पर कनाडा की मटर ₹3725 और रूस की ₹3525, हाजिरा में ₹3625-3475 और मुंद्रा में ₹3525-3425 के दाम पर बिकी। उत्तर प्रदेश के महोबा, कानपुर और मध्य प्रदेश के जबलपुर जैसी मंडियों में भी सफेद और हरी मटर की कीमतों में उतार-चढ़ाव रहा।

इस समय चना और मटर दोनों बाजारों में असंतुलन की स्थिति बनी हुई है। जहां एक ओर आयात और घरेलू उत्पादन ने कीमतों पर दबाव डाला है, वहीं दूसरी ओर MSP के तहत खरीदी के बावजूद बाजार में समर्थन की कमी देखी जा रही है। विशेषज्ञों का मानना है कि यदि सरकार पीली मटर पर आयात शुल्क पुनः लागू करती है, तो चना बाजार को स्थिरता मिल सकती है।

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