पुणे: जलवायु परिवर्तन के चलते स्थानीय उत्पादन प्रभावित होने से 2024 में भारत में दालों का आयात दोगुना हो गया है। 2023 में जहां 3.31 मिलियन टन दालों का आयात हुआ था, वहीं 2024 में यह बढ़कर 6.63 मिलियन टन तक पहुंचने का अनुमान है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह आयात वास्तविक मांग-आपूर्ति के अंतर से अधिक है, क्योंकि सरकार खुदरा मुद्रास्फीति को नियंत्रित करने के लिए बाजार में पीली मटर की बाढ़ ला रही है। उद्योग जगत ने अब 2025 में आयात को सीमित करने के लिए शुल्क लगाने की मांग की है।
पीली मटर बनी सबसे बड़ी आयातित दाल
2023 में शुल्क मुक्त होने के बाद पीली मटर का आयात 2.9 मिलियन टन तक पहुंच गया, जो कुल आयात का 45% है। पिछले वर्ष भारत ने पीली मटर का आयात नहीं किया था। सरकार ने मई 2024 में चने पर भी आयात शुल्क हटा दिया, जिसके चलते इसका आयात चार गुना बढ़कर 574,000 टन हो गया, जबकि 2023 में यह मात्र 131,000 टन था।
अन्य दालों का आयात भी बढ़ा
- उड़द का आयात 28% बढ़ा
- मसूर का आयात 53% बढ़ा
- तुअर का आयात 28% बढ़ा
कमोडिटी विशेषज्ञ राहुल चौहान के अनुसार, आयातित दालों की मात्रा भारत की चार महीने की खपत के बराबर है। भारतीय दलहन एवं अनाज संघ के अध्यक्ष बिमल कोठारी ने कहा, "हमें भारत में पीली मटर की डंपिंग को रोकने की जरूरत है। अत्यधिक आयात के कारण पहली बार प्रोटीन युक्त पीली मटर गेहूं से भी सस्ती हो गई है।"
उद्योग जगत की चिंता और सरकारी रुख
उद्योग ने सरकार से दालों के अनियंत्रित आयात को नियंत्रित करने की मांग की है। सरकारी सूत्रों का कहना है कि बढ़ते दामों को काबू में रखने के लिए दालों का आयात आवश्यक था।
भारत में उड़द केवल म्यांमार से, तुअर मुख्य रूप से अफ्रीका से और चना ऑस्ट्रेलिया से आयात किया जाता है। वहीं, पीली मटर कनाडा, अमेरिका, यूक्रेन और रूस जैसे देशों से बड़ी मात्रा में उपलब्ध है। भारतीय उद्योग इसे बेसन के विकल्प के रूप में और तुअर/अरहर में मिलाकर उपयोग कर रहा है।