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अनाज के मुकाबले पिछड़ रही है दाल और तिलहनों की सरकारी खरीद

केंद्र सरकार द्वारा दालों और तिलहनों के उत्पादन को बढ़ाने के हालिया प्रयास—जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी—अभी भी असंगत बने हुए हैं, क्योंकि MSP का सबसे बड़ा लाभ अब भी चावल और गेहूं जैसे जल-प्रधान अनाजों को ही मिल रहा है। यह खुलासा हाल ही में जारी भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI)

Business 02 Jun  Hindusatn Times
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केंद्र सरकार द्वारा दालों और तिलहनों के उत्पादन को बढ़ाने के हालिया प्रयास—जैसे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) पर खरीदी—अभी भी असंगत बने हुए हैं, क्योंकि MSP का सबसे बड़ा लाभ अब भी चावल और गेहूं जैसे जल-प्रधान अनाजों को ही मिल रहा है। यह खुलासा हाल ही में जारी भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) के आंकड़ों से हुआ है।

हालांकि सरकार द्वारा दालों और तिलहनों की खरीद में कई गुना वृद्धि हुई है, फिर भी यह गेहूं और चावल की तुलना में काफी कम बनी हुई है। भारत में अनाज का उत्पादन भरपूर होता है, लेकिन दालों और तिलहनों का उत्पादन पर्याप्त नहीं है, जिसके चलते इनका आयात महंगाई को बढ़ावा देता है और विदेशी मुद्रा भंडार पर भी दबाव डालता है।

मोदी सरकार ने दाल और तिलहन की खेती को प्रोत्साहित करने के लिए दोहरी रणनीति अपनाई है। सरकार जहां इन फसलों के लिए लगातार ऊँचे MSP घोषित कर रही है, वहीं सहकारिता और खाद्य मंत्रालय राज्य-समर्थित सहकारी संस्थाओं को किसानों से इन फसलों की खरीद के लिए प्रेरित कर रहे हैं।

भारत की खाद्य नीति की रीढ़ मानी जाने वाली सरकारी खरीद का तात्पर्य है कि सरकार किसानों से MSP पर फसलें खरीदती है, जो लागत पर न्यूनतम 50% लाभ सुनिश्चित करने के लिए तय की जाती है।

फिर भी आंकड़े बताते हैं कि अनाज की खरीद अब भी दालों और तिलहनों की तुलना में कहीं अधिक है। 2024-25 कृषि वर्ष के दौरान केंद्र सरकार ने कुल 77.86 मिलियन टन अनाज (52.26 मिलियन टन चावल और 26.26 मिलियन टन गेहूं) की खरीद की।

इसके मुकाबले, सरकार सिर्फ 4.6 मिलियन टन दाल और 0.6 मिलियन टन तिलहन की ही खरीद कर पाई। 2024-25 के रबी सीजन में राज्य एजेंसियों ने कुल 0.43 मिलियन टन दालों की खरीद की, जिनमें प्रमुख रूप से चना शामिल है। यह जानकारी हाल ही में जारी आरबीआई की वार्षिक रिपोर्ट में दी गई है।

यह भी समझना जरूरी है कि अनाज की खरीद इसलिए अधिक होती है क्योंकि इनका विपणन योग्य अधिशेष (उत्पादन - किसानों की स्वयं की खपत) अधिक होता है। इसके अलावा, भारत को 80 करोड़ से अधिक लाभार्थियों को राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा अधिनियम के तहत गेहूं और चावल वितरित करने के लिए भारी मात्रा में भंडारण भी करना होता है।

आधिकारिक आंकड़े यह भी दर्शाते हैं कि दालों की खरीद में उतार-चढ़ाव बना रहता है। 6 दिसंबर 2024 को राज्यसभा में एक असितारे प्रश्न के उत्तर में बताया गया कि 2019-20 में 2.8 मिलियन टन दालों की खरीद हुई थी; जो 2020-21 में घटकर 0.81 मिलियन टन रह गई। 2021-22 में यह बढ़कर 3.3 मिलियन टन हुई; फिर 2022-23 में 2.8 मिलियन टन और 2023-24 में गिरकर मात्र 0.69 मिलियन टन रह गई।

केंद्र सरकार ने बजट 2025-26 में घोषणा की कि देश में तुअर (अरहर), उड़द और मसूर का राज्य स्तर पर 100% उत्पादन 2028-29 तक खरीदा जाएगा, ताकि देश में दालों की आत्मनिर्भरता हासिल की जा सके। दालों और तिलहनों की यह खरीद प्रधानमंत्री अन्नदाता आय संर्वक्षण अभियान (PM-AASHA) के तहत की जाती है।

UN Comtrade के अभिषेक अग्रवाल ने कहा, “सरकार ने दालों की खरीद को बढ़ाने की प्रतिबद्धता तो दिखाई है, लेकिन इसे उत्पादन बढ़ाने की प्रेरणा बनाने के लिए और ठोस प्रयासों की ज़रूरत है।”

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