देश के दलहन बाजार में इस समय कुछ खास पक रहा है — एक तरफ उत्पादन घटता जा रहा है, दूसरी तरफ आयात सीमित हो गया है, और तीसरी ओर घरेलू मांग दबाव बनाना शुरू कर चुकी है। यही वह त्रिकोण है, जहां से तेज़ी की लहर निकलती है — और संकेत साफ हैं कि यह लहर अब उभर रही है।
सबसे पहले नज़र डालते हैं देसी चने पर, जो वर्षों से भारतीय थाली का आधार रहा है। गुजरात जैसे राज्यों में कुछ कारोबारी भले ही अधिक उत्पादन दिखा रहे हों, लेकिन जमीनी हकीकत ये है कि प्रति हेक्टेयर उत्पादकता लगभग हर प्रमुख क्षेत्र में घट रही है। वहीं, मुंद्रा पोर्ट पर ऑस्ट्रेलियाई माल की भारी कमी है। इन दोनों कारकों ने मिलकर बाजार को एक बार फिर से ऊपर की ओर धकेल दिया है, और लॉरेंस रोड पर राजस्थानी चना ₹5850/क्विंटल तक जा पहुंचा है।
अब बात करते हैं मटर की — जो आयात पर सबसे अधिक निर्भर है। सरकार ने इसका शुल्कमुक्त आयात 31 मई तक बढ़ा दिया, लेकिन इसके बावजूद बंदरगाहों पर भारी स्टॉक नहीं दिख रहा। इसके साथ ही देश में इस साल सिर्फ 14–15% घरेलू उत्पादन हुआ है। यही कारण है कि जो मटर पहले ₹35–₹36 पर था, अब उसमें भी ₹2 प्रति किलो की उछाल दर्ज हुई है — यह उछाल मामूली नहीं, संकेत है कि नीचे का फर्श बन चुका है।
इसी कड़ी में जब हम राजमा चित्रा की बात करते हैं, तो अंतरराष्ट्रीय बाज़ार का रोल बड़ा हो जाता है। चीन में इसके दाम $1180–$1200/टन चल रहे हैं, लेकिन आयातक खरीद से पीछे हट रहे हैं। क्यों? क्योंकि भारतीय ब्राजील क्वालिटी इस बार जबरदस्त निकली है और यही माल घरेलू बाजार में ₹105–₹108/किलो पर बिक रहा है — साथ ही एक हफ्ते में ₹5 की बढ़त दिखा चुका है। इसका मतलब है कि इंडियन क्वालिटी अब इंपोर्टेड माल को टक्कर दे रही है, और इसका असर पूरी दलहन मार्केट पर पड़ेगा।
काबुली चना भी इस माहौल से अछूता नहीं है। महाराष्ट्र से जो माल आ रहा है, वह ₹68–₹70/किलो पर बिक रहा है और विशेषज्ञों की मानें तो इसमें जोखिम नाममात्र का है। आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और एमपी से आने वाली सप्लाई की चर्चा है, लेकिन वो कब और कितनी मात्रा में आएगी — इस पर स्पष्टता नहीं है। बाजार अभी जो भाव दिखा रहा है, वो कहीं से भी मंदी के संकेत नहीं दे रहा।
क्या संकेत हैं बाज़ार के?
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उत्पादन हर तरफ कमजोर — चाहे चना हो या मटर।
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आयात सीमित — शुल्कमुक्त छूट के बावजूद भारी स्टॉक नहीं।
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घरेलू क्वालिटी — विशेष रूप से राजमा और काबुली चने में — बहुत बेहतर आ रही है।
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कीमतों में मंदी की गुंजाइश सीमित, और धीरे-धीरे तेजी पकड़ रही है।