देशभर में नकदी संकट के कारण दलहन बाजार में अस्थायी मंदी देखी जा रही है, लेकिन देशी चना (काबुली नहीं) की बात करें तो इसके फंडामेंटल अब मजबूत होते दिख रहे हैं। उत्पादक मंडियों में इसकी आवक में भारी कमी और ऑस्ट्रेलिया से आयातित चने का मुंद्रा पोर्ट पर निपटान हो जाने के कारण आने वाले समय में इसकी कीमतों में अच्छी बढ़त की संभावना बन रही है। बीते दो दिनों से विक्रेताओं की सक्रियता में भी कमी आई है।
विशेषज्ञों के अनुसार, लगातार दूसरे वर्ष देशी चने का उत्पादन देश के प्रमुख उत्पादक राज्यों — मध्य प्रदेश, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश — में कम हुआ है। इसके अलावा, जनवरी और फरवरी के मध्य आई तेज़ गर्मी ने फसल को प्रतिकूल रूप से प्रभावित किया है, जिससे दाने छोटे और प्रति हेक्टेयर उत्पादकता घट गई है। आंध्र प्रदेश और कर्नाटक में आपूर्ति 50–60% तक घट चुकी है, वहीं महाराष्ट्र में भी मंडियों में दबाव नहीं बन पा रहा है।
इंदौर और ग्वालियर लाइन की बड़ी दाल मिलें पहले ही राजस्थान की कुछ मंडियों से खरीदी कर चुकी हैं, जिससे अब वहाँ से भी माल कम आ रहा है। राजस्थान के बीकानेर, शेखावाटी, तारानगर, नोहरभद्रा और सवाई माधोपुर क्षेत्रों की मंडियों में पिछले साल की तुलना में इस बार 23% कम आवक देखी गई है।
दिल्ली एनसीआर की दाल मिलें एमपी की मंडियों में ऊँचे भावों के कारण खरीद नहीं कर पा रही हैं। साथ ही, ऑस्ट्रेलिया से आयातित चना अब वितरण और उपभोग बाजारों में कम मात्रा में दिखाई दे रहा है। मुंद्रा पोर्ट पर स्टॉक लगभग समाप्त हो चुका है। 10% कस्टम ड्यूटी लागू होने के कारण विदेशी आयात भी महंगा हो गया है, जिससे चना आयात की संभावना भी सीमित हो गई है।
दलहन कारोबारियों पर पिछली अवधि के अग्रिम व्यापारों का भी भारी असर पड़ा है। तुअर, उड़द और चने के फॉरवर्ड सौदों में 70% खरीदारों ने माल नहीं उठाया, जिससे करीब 30,000 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। अब जब विदेशी व्यापारियों के साथ सेटलमेंट्स पूरे हो चुके हैं, तो घरेलू व्यापारियों को मंदी के दबाव से राहत मिलती दिख रही है।
वर्तमान में, दिल्ली लॉरेंस रोड पर राजस्थान का देशी चना 5800–5850 रुपये प्रति क्विंटल तक पहुंच चुका है और आने वाले समय में बाजार में इसकी तेज़ी के प्रबल संकेत हैं। विश्लेषकों का मानना है कि मौजूदा कीमतें अब भी नीची हैं और थोड़े इंतज़ार के बाद इसमें मुनाफा कमाने के अच्छे अवसर बन सकते हैं।
निष्कर्षतः, देशी चने की मौजूदा स्थिति मजबूत होती दिख रही है और अगर मांग में स्थिरता बनी रही तो बाजार में उल्लेखनीय वृद्धि संभव है।